Chilkigarh Kanak Durga Temple | यहा पर है माता कनक दुर्गा की सोने की मूर्ती !

Chilkigarh Kanak Durga Temple : चिल्कीगढ़ आदिवासी संस्कृति और ब्राह्मण परंपराओं से संबंधित है | जैसे जैसे समय निकलता गया वैसे ही यहा पर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक बदलाव होते गये | मेदिनीपुर जिले में स्थित चिल्कीगढ़ का मुख्य आकर्षण कनक दुर्गा मंदिर है | कनक माता का यह मंदिर घने जंगल के बीच मे स्थित है | मंदिर के पूर्व दिशा मे डुलुंग नदी बहती है | इस जंगल मे करीब 433 प्रकार की औषधीय वनस्पति देखने को मिल जाती है |

बिहार और झारखंड से, जम्बोनी ( पीएस ) को ‘ बंगाल का प्रवेश द्वार ‘ कहा जाता है | यहा पर चिल्किगढ़ में बंगाल, झारखंड और उड़ीसा की संस्कृति का अनोखा मिश्रण हमे देखने को मिलता है | डुलोंग नदी आदिवासी गांवों से होकर बहती है | तो चलीये आज हम आपको प्रकृती के बीच मे स्थित माता के इस Chilkigarh Kanak Durga Temple के बारे मे बताते है |

Chilkigarh Kanak Durga Temple

Chilkigarh Kanak Durga Temple History : चिल्कीगढ़ कनक माता मंदिर का इतिहास

कनक दुर्गा मंदिर

इस मंदिर कहानी मे सबसे महत्वपूर्ण है, एक मील का पत्थर और ब्राह्मण रामचंद्र सारंगी | यहा के कुछ लोगो का यह मानना है, की कनक दुर्गा देवी चंडी है | यह ऊर्जा और शक्ति की देवी है | पहले इस मंदिर को बारामहल के नाम से जाना जाता है | कुछ साल बाद राजा कमलकांत ने मंदिर को स्थानांतरित करने की योजना बनाई | उन्होने ऊनके सपने मे देवी कनक दुर्गा को नीली साड़ी मे देखा | तब देवी ने उन्हे अपना मंदिर स्थानांतरित न करने का आदेश दिया |

देवी कनक दुर्गा अभी भी तीन सौ साल से अधिक समय तक उस स्थान पर निवास कर सके | तबसे राजा का परिवार कभी भी नीली साड़ी नहीं पहनता है | तबसे प्रथा है, की केवल सारंगी (ब्राह्मण) उपनाम वाला व्यक्ति ही मंदिर का पुजारी हो सकता है | कनक दुर्गा मंदिर दक्षिण दिशा में स्थित है |

ऐसा माना जाता है, की एक समय उस क्षेत्र में सूखा पड़ा था और यहा के लोग भूक से मर रहे थे | अचानक एक दिन आसमान में बड़े-बड़े बादल छा गए और जोरदार बारिश हुई | खेत फिर से हरे हो गए | लेकिन इस बारीश ने किसी की जान नहीं ली | चिल्कीगढ़ के एक बुजुर्ग व्यक्ति ने इसका श्रेय देवी महामाया की कृपा को दिया | तब चिल्कीगढ़ के निवासियों ने एक बरगद के पेड़ के नीचे एक छोटा सा मंदिर स्थापित करके खुद को देवी महामाया के सामने समर्पित कर दिया |

Chilkigarh Kanak Durga Temple

यह चार सौ साल पुराना बरगद का पेड़ आज भी समय बीतने का गवाह बनकर शांत गरिमा के साथ खड़ा है | कुछ लोग ऐसा कहते है, की उस मंदिर के ठीक सामने एक बड़ा पत्थर था | उन्हें लगता है कि यह पत्थर कोई सामान्य पत्थर नही ह; एक आंतरिक कक्ष की कुंजी है और वह कक्ष एक प्रतिबंधित स्थान है | केवल एक सारंगी ( ब्राह्मण ) को ही उस गुप्त कक्ष में प्रवेश करने का अधिकार है | उस जंगल में हमें भगवान शिव के कई छोटे-छोटे मंदिर देखने को मिलते है |

एक कहानी के अनुसार वे मंदिर रातों-रात जमीन से स्वयं ही निकल आए थे | देवी महामाया के बारे में एक और मौखिक कहानी है, जो इस क्षेत्र की रक्षक के रूप में पीढ़ियों से चली आ रही है | शुरू के समय में मंदिर के पुजारी को अंधेरी रात में जंगल से अकेले घर लौटने में डर लगता था | लेकिन जैसा कि कहा जाता है, देवी महामाया ने उसे वापस लौटने पर अपनी सुरक्षा का आश्वासन दिया था | लेकिन इस शर्त पर कि वह कभी पीछे मुड़कर नहीं देखेगा ! इस तरह उनकी सुरक्षा में पुजारी रात-रात भर निर्भय होकर जंगल से गुजरता रहा |

वर्षों से कनक दुर्गा की महिमा व्यापक होती गई है | नवमी पूजा के दौरान भगवान को एक जानवर का वध करने की प्रथा थी | बेहतर स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए यह प्रथा जारी रही | वध से प्राप्त भोजन को पवित्र माना जाता था | माँ कनक दुर्गा ( या स्वर्ण दुर्गा ) की मूर्ति, मूल मूर्ति पत्थर की थी | अब इस मूर्ती को सोने में लपेटा गया है |

चिल्कीगढ़ का इतिहास धालभूम के इतिहास से जुड़ा हुआ है

धालभूम राजाओं की शूरवात मध्य प्रदेश के उत्तर पश्चिम से हुई थी | उनके पहले राजा सूर्यवंश के राजा रामचंद्र थे | उनके बेटे का नाम बिरसिंह और बिरसिंह के दो बेटे थे गुणधर सिंह और जगतदेव सिंह | एक बार गुणधर और जगतदेव के बीच संघर्ष हुआ और जगतदेव ने अपना घर छोड़ दिया | वह बिहार ( अब का झारखंड ) के एक हिस्से में आ गया जो घने जंगलों से भरा था | वह जगह उसे बहुत पसंद आई, फिर जगतदेव और धबलदेब के बीच संघर्ष हुआ | जगतदेव ने धबलदेब को बहुत आसानी से हरा दिया |

धबलदेब की रानी के अनुरोध पर जगतदेव ने उनकी याद में ‘धबलदेब’ उपनाम अपना लिया | उस समय मे पुरी के भगवान जगन्नाथदेव की महिमा प्रसिद्ध हुआ था | जगतदेव ने अपना नाम बदल लिया और जगन्नाथदेव धबलदेब बन गए | वे जगन्नाथ नामक आठ राजाओं में से सातवें थे |

जगतदेव जंगलमहल में राजा गोपीनाथ के संपर्क में आए | राजा गोपीनाथ ने अपनी इकलौती बेटी सुवर्णमणि का विवाह राजा जगन्नाथ से कर दिया | इस विवाह से जंगलमहल और धालभूम के बीच संबंध और मजबूत हो गए थे | बाद में मंगोबिंदो चिल्कीगढ़ के राजा बने, उनके समय को जाम्बोनी का स्वर्ण युग कहा जाता है | उन्होंने तीस साल तक शासन किया था |

मंगोबिंदो को भारतीय कला और संस्कृति में बहुत रुचि थी |
चिल्कीगढ़ मे अलग अलग जाती समुदायों के लोग रहते है | उन सभी ने अपनी सांस्कृतिक विशिष्टताओं को बनाए रखा और यह संस्कृतियों का एक अनोखा मिश्रण बन गया | इन सबमे उच्च जाति के ब्राह्मणों ने बागड़ी, बाउरी, डोम और संथाल जैसी बड़ी निम्न जाति, बहिष्कृत और आदिवासी आबादी के साथ-साथ रहते है |

मुख्य कहानी एक सपने के इर्द-गिर्द घूमती है | देवी महामाया एक सपने में आईं और राजा गोपीनाथ को उनकी पूजा के लिए एक मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया गया | उस सपने में देवी महामाया ने अपनी मूर्ति का भी वर्णन किया | अगली सुबह राजा गोपीनाथ को दो यात्री मिले जिन्होंने भी रात में वही सपना देखा था | वे कलाकार जोगेंद्रनाथ कामिल्या थे | चिल्कीगढ़ में माँ महामाया का पुराना मंदिर है | मूर्ति को उसी परिसर में एक नए मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया है |

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भौतिक संस्कृति

धर्म का इतिहासकार भौतिक संस्कृति पर जोर देता है जिसका उपयोग सांस्कृतिक कार्य में किया जाता है | भौतिक संस्कृति इस प्रकार एक संस्कृति के विश्वदृष्टिकोण के निर्माण का एक संघटक हिस्सा होती है | यह समाज में भौतिक संस्कृति की भूमिका को समझने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में किए जा रहे प्रयासों के लिए एक सैद्धांतिक आधार है |

कनक दुर्गा माता मूर्ती

राजा गोपीनाथ के समय में देवी कनक दुर्गा की पहली मूर्ति पत्थर से बनी थी; बाद मे इसे सोने से बनाया गया | ‘कनक’ शब्द का अर्थ है ‘सोना’ |
मूर्ति की प्रतिमा से हमें तत्कालीन समाज की एक अलग तस्वीर है | मंदिर में उड़ीसा मंदिर वास्तुकला और लोक परंपरा देखने को मिलती है |
मंदिर पर विभिन्न घटनाओं के चित्र उकेरे गए है | मुख्य मंदिर की जीर्ण-शीर्ण स्थिति के कारण हम उन्हें पढ़ नहीं पाते | मंदिर हमें कोणार्क के सूर्य मंदिर की याद दिलाता है | मंदिर की वास्तुकला से पता चलता है कि मंदिर तीन से चार सौ साल पहले बनाया गया था |

Chilkigarh Kanak Durga Temple

मंदिर के ठीक सामने एक विशाल बरगद का पेड़ है | जो लगभग 300 साल पुराना है | इस बरगद के पेड़ को हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान में एक पवित्र पेड़ माना जाता है | जंगलों में रहने वाले बंदरों की दुर्लभ प्रजातियाँ राजा के परिवार के पूर्वज माने जाते है | इसलिए कोई उन्हें नुकसान नहीं पहुँचाता | ये बंदर इस रहस्यमय और खूबसूरत जगह के पारिस्थितिकी तंत्र का मूल्यवान हिस्सा है |

यह समय बीतने के साथ पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते है | यह मंदिर आर्य और अनार्य संस्कृतियों का मिलन स्थल था | मंदिर धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक व्यवस्था का प्रतिबिंब है | देवी महामाया को नर बलि देने की प्रथा थी | बलि तब तक नहीं रोकी जा सकती थी जब तक कि रक्त डुलुंग नदी में न मिल जाए |

राजा मंगोबिंदो के समय में ‘ पतंग उत्सव ‘ नाम का त्यौहार होता था | इसे पवित्र त्यौहार माना जाता था, जो प्राचीन भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक मूल्यवान हिस्सा था | कलाकार जगन्नाथ दास राजा के लिए बड़ी पतंगें बनाते थे | दुर्गा पूजा के दिनों में यह स्थान और भी जीवंत हो जाता है | त्यौहार के दिनों में आर्य संस्कृति लोक संस्कृति के साथ मिल जाती है |

पश्चिम मेदिनीपुर की लोक परंपरा में एक मील का पत्थर देवी माँ की पूजा शक्ति पंथ जीवन में पूर्ण विसर्जन पर जोर देता है | जहाँ मानवीय आवेगों पर भी काबू पाया जाता है और ऊर्जा के उच्च रूपों में परिवर्तित किया जाता है | आध्यात्मिक प्राप्ति के लिए सामंजस्य स्थापित किया जाता है |

देवी की पूजा अक्सर संबंधित देवताओं की पूजा से जुड़ी होती है | शाक्त, अन्य वैदिक उपासकों की तरह, माँ जगत जननी की पंचोपचार पूजा की जाती है | इसी प्रकार देवी की पूजा भी शाक्त, अन्य वैदिक उपासकों की तरह, माँ जगत जननी की पंचोपचार पूजा करते है | इसी तरह देवी कनक दुर्गा की पूजा शक्ति की देवी का प्रतीक है | भारत में मातृ-देवी पंथ आर्यों से पहले का है | कनकदुर्गा मंदिर में पूजा अहंकारी संतुष्टि नहीं बल्कि पारलौकिकता का कार्य है |

इंद्रियों पर नियंत्रण के माध्यम से व्यक्ति आध्यात्मिक परमानंद प्राप्त करता है | स्वप्न का महत्व इस कहानी में स्वप्न बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | स्वप्न का उपयोग यहाँ हमारी विश्वास प्रणाली को स्वाभाविक बनाने के लिए एक रूपक में किया जा रहा है | उस विश्वास पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता | स्वप्न धर्म को भी बहुत उच्च स्तर पर रखता है | यह सब मनुष्य की पहुँच से परे है |