Durga Temple Varanasi | इस नवरात्री करे मां दुर्गा के दर्शन पवित्र वाराणसी मे !

Durga Temple Varanasi वाराणसी के गंगा तट पर स्थित धार्मिक स्थल काशी हिंदू का पवित्र तीर्थस्थल है | लोग यहा भोलेनाथ के दर्शन के लीये दूर-दूर से यहां इस स्थान पर आते है | लेकिन यहां वाराणसी मे मां दुर्गा का पुरातन मंदिर है | तीर्थ स्थल वाराणसी में कई प्रमुख मंदिर है, उन्हीं में से एक प्रसिद्ध मां दुर्गा का ये मंदिर है | नवरात्रि में यहां मां दुर्गा की पूजा करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ होती है | अगर आप भी वाराणसी जाने का चाहते है तो इस Durga Temple Varanasi दुर्गाकुंड जाना ना भूले | आज के इस लेख मे हम आपको मां दुर्गा के इस मंदिर के बारे मे जाणकरी देनेवाले है |

दुर्गा कुंड मंदिर

दुर्गा मंदिर को दुर्गा कुंड मंदिर के नाम से भी जाना जाता है | भारत के उत्तर प्रदेश के पवित्र स्थल वाराणसी मे स्थित यह मां दुर्गा प्रमुख हिंदू मंदिर है | दुर्गा मां को समर्पित मंदिर है | हिंदू धर्म मे उन्हे दैवीय शक्ति और सुरक्षा के प्रतीक माना जाता है | इस मंदिर की सुंदरता, अनूठी वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व इन वजह से यह सिर्फ धार्मिक स्थल ही नही बल्की पर्यटक आकर्षणों में से एक है |

इस मंदिर की एक विशेषता है, की हमे मंदिर मे मां दुर्गा के कई स्वरूपों के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है | यहा पर आने पर सकारात्मक उर्जा का प्रभाव होता है | इसलीये माता के दर्शन के लिए लोग घंटों लाइन में खडे रहते है | इस मंदिर को इस प्रकार से बनाया गया है, की आप सड़क से भी माता के दर्शन कर सकते है |

पुरातन काल से है यह मंदिर

मां दुर्गा इस मंदिर मे यंत्र के रूप में विरामजान देखने को मिलती है | इस मंदिर मे सरस्वती, लक्ष्मी, काली, और बाबा भैरोनाथ की मूर्तियां स्थापित की गई है | यह मंदिर आदिकाल से स्थित है | मां ने असुर शुंभ और निशुंभ का वध किया था, तो उन्होने यही इसी स्थान पर विश्राम किया था | वह मंदिर मे शक्ति स्वरूप में विराजमान है | आदिकाल से यहा पर सिर्फ तीन मंदिर ही थे, जिसमें पहला काशी विश्वनाथ, दूसरा मां अन्नपूर्णा, और तीसरा दुर्गा मंदिर है | यहा की ऐसी मान्यता है, की यहा पर तंत्र पूजा भी की जाती है | प्रतिदिन इस देवी कुंड मे हवन होता है |

दुर्गा मंदिर का निर्माण

दुर्गा मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था | रानी भवानी ने इस मंदिर को बनवाया था, जो मां की निस्सीम भक्त थी | मंदिर का कुंड विशेष है, क्युकि इस कुंड को गंगा नदी से जोडा जाता है | इस मंदिर की वास्तूकला का निर्माण उत्तर भारतीय नागर शैली में लाल पत्थरों से किया गया देखने को मिलता है | मंदिर की दीवारों पर कई सुंदर नक़्क़ाशीदार पत्थर दिखाई देंगे |

Durga Temple Varanasi

दुर्गा मंदिर को बंदर मंदिर भी कहा जाता है | क्युकि मंदिर परिसर मे बड़ी संख्या में बंदरों की उपस्थिति है | मंदिर में देवी स्वयं प्रकट हुई थी; इसलीये वी दुर्गा की मूर्ति मानव निर्मित नहीं है | लाखों हिंदू भक्त अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए नवरात्रि और अन्य शुभ अवसरों पर दुर्गा मंदिर जाते है | मंदिर चौकोर आकार में बना है, जिसमें लाल रंग का पत्थर माता दुर्गा के रंग का प्रतिनिधित्व करता है |भक्त मंदिर की इमारत के चारों ओर चक्कर लगाते है; ऐसा कहा और माना जाता है कि, दुर्गा माता हमेशा वाराणसी को समस्याओं से बचाती है |

माता दुर्गा शक्ति ( भगवान शिव की पत्नी पार्वती ) का अवतार है, जिसका अर्थ स्त्री शक्ति होता है | माता दुर्गा लाल रंग की पोशाक पहनती है, अपना वाहन बाघ पर सवार होकर शिव के त्रिशूल, विष्णु के चक्र, तलवार आदि से पूरी तरह सुसज्जित होती है | दुर्गा घाट वाराणसी के सबसे प्रसिद्ध घाटों में से एक है | जिसका निर्माण 1772 में एक संत नारायण दीक्षित ने कराया था |

दुर्गा कुंड

दुर्गा मंदिर के दाईं ओर, पानी का एक आयताकार तालाब है | इस तालाब को ही दुर्गा कुंड नाम से जाना जाता है | पहले इसे सीधे नदी से जोड़ा जाता था, ताकि यह अपने आप भर सके | लेकिन आज की परिस्थिति में जल आपूर्ति को रोकने के लिए जल चैनल को बंद कर दिया गया है | अब तालाब में पानी बारिश या मंदिर से निकलने वाले नाले से इकट्ठा होता है | नाग पंचमी के अवसर पर भगवान विनायक के दर्शन की क्रिया की जाती है | नाग पंचमी के अवसर पर भगवान विष्णु को शेषनाग पर विश्राम करते हुए दिखाने की क्रिया हर साल दुर्गा कुंड में दोहराई जाती है |

दुर्गा मंदिर का इतिहास

अयोध्या के राजा ध्रवसंधि अपनी दो पत्नियाँ जिनके नाम मनोरमा और लीलावती थे | मनोरमा के पुत्र सुदर्शन और लीलावती के पुत्र सत्रजित थे |
दोनों पुत्र शिक्षा बहुत अच्छी तरह से प्राप्त कर रहे थे | एक दिन राजा ध्रवसंधि शिकार करने गए और उन्हे एक शेर ने उन्हें मार डाला | राजा के मंत्री ने सुदर्शन के बगल में जाने का फैसला किया था, लेकिन राजा की दूसरी पत्नी ने इसका विरोध किया | यथाजित ( लीलावती के पिता ) ने सुदर्शन को मारने की योजना बनाई, इससे मनोरमा डर गई और वो अपने बेटे के साथ राज्य छोड़कर त्रिकुटाद्री में संत भारद्वाज के पास अपने बच्चे को बचाने के लिए चली गई |

Durga Temple Varanasi

सुदर्शन अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था तब उसने क्लीबा शब्द सुना जिसका अर्थ जिसका अर्थ है नपुंसक होता है | कुछ दिनों के बाद वह वास्तविक शब्द भूल गया और हमेशा क्लीं का उच्चारण करने लग गया | संत ने देखा कि उसे वैष्णवी ( काम बीजाक्षरा द्वारा पूजित देवी ) की पूजा करने की शिक्षा दी गई थी | उसने देवी वैष्णवी की पूजा करना शुरू कर दिया और एक बार वह उसके सामने आईं | वह उससे खुश हुईं और उसे युद्ध के मैदान में हमेशा जीतने के लिए एक आध्यात्मिक धनुष और बाण भेट दिया |

शशिकला ( काशी के राजा, सुबाहु की बेटी ) सुदर्शन के बारे में अधिक सुनकर उससे प्यार करने लगी | एक रात, माता वैष्णवी उसके सपने में आईं और सुदर्शन से विवाह करने के लिए उससे कहा | तब सुदर्शन अपनी माँ के साथ शशिकला के स्वयंवर में गया | सत्रिजीत भी अपने दादा यथाजीत के साथ स्वयंवर में मौजूद था | उसने घोषणा की और शशिकला को चेतावनी दी, कि उसे सत्रिजीत को अपने पति के रूप में चुनना चाहिए | अन्यथा वह दोनों को मार देगा |

शशिकला के पिता बहुत डर गए और अपनी बेटी को सत्रिजीत से शादी करने के लिए उसे सहमत करने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसने इनकार कर दिया | उसने अपने पिता से कहा, कि माता वैष्णवी उनकी रक्षा करेंगी | सुबाहु ने उस रात अपनी बेटी का विवाह सुदर्शन से कर दिया | यह घटना सुनकर यथाजित अपनी सेना के साथ काशी की सीमा पर सुदर्शन से युद्ध करने आया | दोनों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया था, तभी आकाश में देवी दुर्गा उनके सामने प्रकट हुईं और दोनों ( यथाजित और सत्रजित ) को मार डाला | पूरी सेना भयभीत होकर युद्ध क्षेत्र से दूर चली गई |

इस तरह सुदर्शन को युद्ध में विजय प्राप्त हुई और यह सब जानकर सुबाहु भी देवी वैष्णवी का भक्त बन गया और उनकी पूजा करने लगा | देवी वैष्णवी उससे प्रसन्न हुईं और उससे वरदान मांगने को कहा | सुबाहु ने उनसे काशी में निवास करने और उनकी रक्षा करने की प्रार्थना की | देवी वैष्णवी ने यह स्वीकार किया और दुर्गा कुंड के तट पर निवास किया | जहाँ सुबाहु ने एक मंदिर बनवाया, विजय के बाद सुदर्शन अयोध्या चले गए और अयोध्या पर शासन करने लगे |

इसे भी पढे : चील्कीगढ की कनक दुर्गा माता

वाराणसी दुर्गा कुंड

दुर्गा कुंड की प्राचीन उत्पत्ति : मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है, जिसकी जड़ें 500 साल से भी ज़्यादा पुरानी हो सकती है | ऐसा कहा जाता है, कि इसका निर्माण मराठा राजा के शासनकाल में हुआ था | हालाँकि सटीक तारीख अनिश्चित है | वाराणसी दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है और इसका हिंदू धर्म और उससे जुड़े मंदिरों का गहरा इतिहास है |

दुर्गा कुंड का पौराणिक महत्व

मंदिर का महत्व अक्सर एक स्थानीय किंवदंती से जुड़ा होता है | जो राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत का वर्णन है | लोककथाओं के अनुसार, मंदिर का निर्माण उसी स्थान पर किया गया था; जहाँ देवी और राक्षस के बीच युद्ध हुआ था | यह पौराणिक संबंध मंदिर के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व को और बढ़ाता है |

दुर्गा कुंड मंदिर नागर शैली की वास्तुकला को दर्शाता है, इसकी ऊँची चोटी ( शिखर ) और जटिल पत्थर की नक्काशी है, जो एक विशेषता है | मंदिर और उसके आस-पास का क्षेत्र, जिसमें दुर्गा कुंड ( तालाब ) भी शामिल है, उत्तर भारत की पारंपरिक स्थापत्य शैली की झलक प्रदान करता है |

सदियों से, मंदिर की संरचनात्मक अखंडता और सौंदर्य को बनाए रखने के लिए कई जीर्णोद्धार और जीर्णोद्धार किए गए है | इन प्रयासों ने यह सुनिश्चित किया है, कि मंदिर वाराणसी में भक्ति और विरासत के प्रतीक के रूप में खड़ा रहे |

धार्मिक महत्व : मंदिर देवी दुर्गा के भक्तों के लिए हमेशा पूजा और भक्ति का केंद्र रहा है | यह आशीर्वाद, सुरक्षा और आध्यात्मिक शांति चाहने वालों के लिए तीर्थस्थल के रूप है |

त्यौहार : मंदिर प्रमुख हिंदू त्यौहारों के दौरान जीवंत हो उठता है, जिसमें नवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण है | नवरात्रि के दौरान, मंदिर को सजाया जाता है | बुरी शक्तियों पर देवी दुर्गा की विजय का जश्न मनाने के लिए विशेष अनुष्ठान और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते है |

सांस्कृतिक विरासत : दुर्गा कुंड मंदिर, अपने ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के साथ, वाराणसी की सांस्कृतिक विरासत में योगदान देता है | यह धार्मिक और सांस्कृतिक अन्वेषण दोनों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है |

दुर्गा कुंड के आसपास के मंदिर

वाराणसी में दुर्गा कुंड के आसपास कई मंदिर है, जहां आप दर्शन के लिए जा सकते है | जिसमें संकट मोचन, तुलसी मानस मंदिर आदि शामिल है | दुर्गा कुंड पहुंचने के बाद इन मंदिरों के दर्शन आसानी से किये जा सकते है |

कैसे पहुँचें ?


यह स्थानीय लोगों और पर्यटकों दोनों के लिए एक लोकप्रिय धार्मिक तीर्थ स्थल है, और यह पूरे वर्ष भक्तों को आकर्षित करता रहता है | मंदिर तक वाराणसी के विभिन्न हिस्सों से सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है |

वाराणसी से विभिन्न स्थानों की दूरी

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से 3.3 किलोमीटर,
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से 2 किलोमीटर और
वाराणसी जंक्शन रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर

मंदिर का पुर पता : 27, दुर्गाकुंड रोड, दुर्गाकुंड, आनंदबाग, भेलूपुर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश 221005

श्री दुर्गा कुंड मंदिर दर्शन का समय

श्री दुर्गा मंदिर सप्ताह के सभी सातों दिन दर्शन के लिए तय समय पर भक्तों के लिए खुला रहता है | माँ दुर्गा का मंदिर प्रतिदिन सुबह 5 बजेसे मंगला आरती के बाद खुलता है और फिर सायं 10 बजे सायं आरती करने के बाद बंद किया जाता है |

श्री दुर्गा कुंड मंदिर की आरती का समय

मंदिर मे चार तरह की आरती की जाती है |
मंगला आरती : सुबह 4:00 बजे
भोग आरती : दोपहर 12:00 बजे
संध्या आरती : शाम 07:00 बजे
सयान आरती : रात 11:00 बजे

कैसे पहुँचें : आप ऑटो, रिक्शा या टैक्सी से जा सकते है | यह बीएचयू से 2 किमी और कैंट वाराणसी से 13 किमी की दूरी पर है |

मंदिर में जाने का सही समय

साल में कभी भी सुबह 7:00 बजे से शाम 8:00 बजे तक आप मंदिर मे दर्शन के लीये जा सकते है |

निष्कर्ष

वाराणसी में श्री दुर्गा कुंड मंदिर न केवल धार्मिक महत्व का स्थान है, बल्कि एक वास्तुशिल्प चमत्कार भी है जो भारत की समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है | यह शहर में पूजा और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है, जो अपने शांत वातावरण और मनोरम वास्तुकला के कारण भक्तों और आगंतुकों को समान रूप से आकर्षित करता है |