Padmdurg Fort | पद्मदुर्ग का इतिहास और महत्व

Padmdurg Fort छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिए अनेक प्रकार के किले बनाए थे। इनमें पहाड़ी किले, जल दुर्ग और मिट्टी के किले शामिल हैं। इन्हीं में से एक जल दुर्ग है पद्मदुर्ग किला, जिसे “कासा किला” के नाम से भी जाना जाता है। यह किला अरब सागर में रायगड जिले के मुरुड के पास स्थित है। आइए, इस ऐतिहासिक किले के बारे में विस्तार से जानते हैं।

Padmdurg Fort

पद्मदुर्ग किला

Padmdurg Fort पद्मदुर्ग किला समुद्र के बीच स्थित एक द्वीप पर बना हुआ है, जिसे कासा द्वीप कहा जाता है। यह किला लगभग 350 साल पुराना है। इस किले का निर्माण छत्रपति शिवाजी महाराज ने किया था। पद्मदुर्ग का निर्माण इस उद्देश्य से किया गया था कि यह जंजिरा किले पर नजर रख सके। जंजिरा किला, जो उस समय सिद्धियों के कब्जे में था, मराठाओं के लिए एक चुनौती बना हुआ था।

किले की बनावट और खासियत

Padmdurg Fort

पद्मदुर्ग किला अपनी खास बनावट के लिए जाना जाता है। इसे स्थानीय लोग कासा किला कहते हैं क्योंकि इसकी आकृति कछुए की तरह दिखती है। किले के मुख्य द्वार के सामने एक बड़ा टॉवर है, जिसका ऊपरी भाग खिलते हुए कमल की पंखुड़ियों जैसा दिखता है। यही वजह है कि इसे “पद्मदुर्ग” नाम दिया गया।

जंजिरा किले पर नजर रखने का उद्देश्य

कोकण के क्षेत्र में जंजिरा किले की सफलता के कारण समस्याएं बढ़ रही थीं। जंजिरा पर कब्जा करना मुश्किल था, और इसका प्रभाव समुद्र और भूमि दोनों पर था। छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुरुड के पास समुद्र में कासा द्वीप पर पद्मदुर्ग किले का निर्माण कराया ताकि सिद्धियों की हालचाल पर नियंत्रण रखा जा सके।

निर्माण के दौरान चुनौतियां

पद्मदुर्ग किले के निर्माण के दौरान सिद्धियों ने इसे रोकने के लिए कई प्रयास किए। उन्होंने किले पर आक्रमण किए, लेकिन मावलों ने दिन-रात मेहनत कर किले का निर्माण पूरा किया। इस संघर्ष में मावलों का धैर्य और परिश्रम काबिले तारीफ था। 1676 में, छत्रपति शिवाजी महाराज ने जंजिरा पर एक अभियान शुरू किया। इस अभियान का नेतृत्व मोरोपंत पिंगले ने किया।

मोरोपंत पिंगले की योजना

मोरोपंत ने जंजिरा पर चढ़ाई करने के लिए एक साहसिक योजना बनाई। उन्होंने जंजिरा किले के पिछले हिस्से से चढ़ाई करने के लिए सीढ़ियां बनाने का आदेश दिया। इस काम के लिए सोनकोलियों के प्रमुख लाई पाटिल ने चुनौती स्वीकार की। एक अंधेरी रात में, लाई पाटिल और उनके साथी अभियान पर निकले। उन्होंने जंजिरा के पीछे सीढ़ियां बनाई और मोरोपंत की सेना का इंतजार किया।

लाई पाटिल की बहादुरी

हालांकि, सुबह होने तक मोरोपंत की सेना नहीं पहुंची। निराश होकर लाई पाटिल पद्मदुर्ग लौट आए। उनकी इस बहादुरी को देखकर शिवाजी महाराज ने उन्हें सम्मानित किया और “सर पाटिल” की उपाधि दी। यह ऐतिहासिक घटना पद्मदुर्ग किले की गवाही देती है।

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किले का इतिहास : संभाजी महाराज के समय

Padmdurg Fort संभाजी महाराज के शासनकाल में पद्मदुर्ग किला स्वराज्य के अधीन था। 1689 में, संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद भी इस किले पर मराठाओं का नियंत्रण था। यह किला मराठा इतिहास की महान गाथाओं का साक्षी है।

आज का पद्मदुर्ग

आज पद्मदुर्ग किला अपने ऐतिहासिक महत्व के कारण एक पर्यटक स्थल बन गया है। हालांकि, यह किला समुद्र के बीच स्थित है, इसलिए यहां पहुंचना थोड़ा कठिन है। इसके बावजूद, इतिहास प्रेमियों और साहसिक यात्रियों के लिए यह किला एक खास आकर्षण है।

पद्मदुर्ग का पर्यटन महत्व

ऐतिहासिक धरोहर : पद्मदुर्ग किला छत्रपति शिवाजी महाराज की दूरदर्शिता और रणनीति का प्रतीक है।
आर्किटेक्चरल वंडर : इसकी अनोखी बनावट इसे अन्य किलों से अलग बनाती है।
नेचुरल ब्यूटी : किला समुद्र के बीच स्थित है, जो इसे प्राकृतिक सुंदरता का अनमोल नजारा बनाता है।
फोटोग्राफी हॉटस्पॉट : फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए यह एक बेहतरीन जगह है।

कैसे पहुंचे पद्मदुर्ग ?

Padmdurg Fort पद्मदुर्ग किला मुरुड के पास स्थित है। मुरुड तक पहुंचने के लिए आप सड़क मार्ग, रेल या हवाई मार्ग का उपयोग कर सकते हैं। मुरुड से किला जाने के लिए नाव की व्यवस्था की जाती है।

निष्कर्ष

पद्मदुर्ग किला छत्रपति शिवाजी महाराज की उत्कृष्ट सैन्य रणनीति और उनके अद्वितीय दृष्टिकोन् का प्रतीक है। यह किला न केवल इतिहास का हिस्सा है, बल्कि मराठा साम्राज्य की गौरवशाली परंपरा का जीता जागता प्रमाण भी है। अगर आप इतिहास और किलों के शौकीन हैं, तो पद्मदुर्ग किले की यात्रा जरूर करें।