Pithapuram datta temple | जानिए श्री दत्तात्रेय भगवान के सबसे पहले अवतार के बारे मे

Pithapuram datta temple

आज के इस लेख मे हम आप लोगो को प्रसिद्ध श्री दत्त भगवान के pithapuram datta temple के बारे मे महत्वपूर्ण जाणकरी देने वाले है | भारत मे बहुत से शक्ति पीठ है उन्मे से ही एक यह पिठमपुर का पीठ सबसे शक्तिमान है | पुरे मानव जाती के जीवन की दिशा बदलने की ताकद इस शक्तिपीठ मे है | यह गाव गोदावरी जिले मे आंध्र प्रदेश के समालकोट से 12 किलोमीटर की दूरी पर छोटासा गाव है | भगवान श्रीपाद का जन्म भाद्रपद शुद्ध चतुर्थी यांनी गणेश चतुर्थी के दिन हुआ था | कृष्णा यजुर्वेद शाखा, आपस्तंब सूत्र, भारद्वाज गोत्रोद्भव ब्रह्मश्री घंडिकोट अप्पल्लराजु शर्मा तथा अखंड सौभाग्य लक्ष्मी महाराणी सुमतीदेवी की कोख से जन्म हुआ था |

pithapram datta temple का इतिहास

यह दत्त मंदिर आंध्र प्रदेश के पीठपुरम गांव मे है, जो की लोकप्रिय आध्यात्मिक स्थान है | इस गांव मे आपालराज नामक ब्राम्हण रहता था | उसकी पत्नी सुमती हररोज आने वाले अतिथि की सेवा करती थी | एक दिन उस ब्राम्हण के घर पे श्राद्ध का कार्यक्रम के समय भगवान श्रीदत्तात्रेय अतिथि के स्वरूप मे गये | ब्राम्हण पत्नी सुमती ने उन्हे भिक्षा दे दी लेकिन उस समय ब्राम्हण भोजन नही हुआ था | श्री दत्तात्रेय भगवान जी ने सुमती को प्रसन्न होकर उसके मन की इच्छा को पुरी करने का आशीर्वाद दिया |

ब्राम्हण पत्नी ने उसकी कहाणी बताई की, उसे कभी पुत्र प्राप्ती का सुख नही मिला, जो भी संतान हुई वह जन्म से ही दृष्टिहीन, अपाहिष पैदा होते थे और उन्मे से कूछ स्वर्गवासी भी हुए | पुत्र के बिन इस जीवन का कोई अर्थ नही है | मुझे आप जैसा ज्ञानी, ईश्वर समान पुत्र प्राप्ती का फल देने की इच्छा बताई |

उस समय श्री भगवान दत्तात्रय भविष्य का आविष्कार का विचार करके प्रसन्न होकर ब्राम्हण पत्नी को तपस्वी, कीर्तिमान और कुलभूषण पुत्र प्राप्ती का आशीर्वाद देकर स्वयं अदृश्य हो गये | आपळराजा जाब घर पहुंचा तो सुमती ने उसे पुरी घटना को सविस्तर रूप से बताया | आपालराजा ने अपनी पत्नी से कहा, तुमने श्रीदत्त-स्वरूप महाराज को भिक्षा देने के कारण मेरे सारे पूर्वज पितर को तृप्ती मिल गयी है |

pithapuram datta temple

इस घटना के बाद ब्राम्हण पत्नी सुमती को पुत्ररत्न की प्राप्ती हुई और वहा के एक ज्योतिष ने उस बच्चे को तपस्वी,ज्ञानी,दीक्षाकर्ता गुरु ऐसा वर्णन किया | उस बच्चे का नाम श्रीपाद रखा गया | सात साल के बाद मुंडन करते समय यह बालक चार वेद और ऊनका वर्णन बत्ताने लगा | 16 साल टक वह सब ब्राम्हण को वेदार्थ, धर्म, आचार के बारे मे बताता था | 16 साल के बाद उसके माता पिता ने उसका विवाह करने की योजना की लेकिन श्रीपाद ने उन्हे स्पष्ट रूप से साफ इन्कार कर दिया और अभी उत्तर दिशा मे तीर्थ चरण जाने के लीये पुच्छा | उसी क्षण माता पिता को समझ आया की यह अवतारी पुरुष है |

पुत्र ने भी उन्हे ऊनकी सब इच्छा को पूर्ण करने का वचन दिया और अपने बडे भाई जो की अंध और अपंग थे ऊनको कृपादृष्टी से ठीक कर दिया और उन्हे सदैव दीर्घायुषी, मातृ पितृ भक्त होकर ऊनका सेवक होने का आशीर्वाद दिया | अपने माता पिता का आशीर्वाद लेकर उन्होने पीठपुरम को छोड दिया | यही पिठामपुरं अब श्रीपाद-श्रीवल्लभ भगवान का जन्मस्थान से प्रसिद्ध है | यहा पर पादगया क्षेत्र है, ऐसा माना जाता है की यहा पर तीर्थ कुंड मे गयासुर के पैर है | यह एक शक्तिपीठ है | यह पर भगवान शिव कूककुटेश्वर के रूप मे आते है |

साल 1983 मे पू. रामस्वामी ने एक जगह को खरीदकर वहा पर 1985 मे औदुंबर का पेड लगाया | वही मंदिर बनाकर महासंस्थान की स्थापना की | साल 1988 मे 22 फरवरी को श्रीपाद श्रीवल्लभ का जन्मस्थान पर ऊनकी पादुका की श्री पू. राम स्वामी के हाथो से पादुका की स्थापना हुई | श्रीपाद श्रीवल्लभ चरित्रामृत मे श्रीपाद ने बत्ताया था की ऊनका जन्म जहा पर हुआ था वही पर ऊनकी पादुका का मंदिर होगा | ऊनके बताने के मुताबिक वही पर पादुका को स्थापन किया |

श्रीदत्त वैभव इसे भी पढे

फेमस दत्तात्रेय मंदिर गानगापूर

पिठापूरम मंदिर का महत्व

इस मंदिर मे श्रीपाद श्रीवल्लभ, श्री दत्तात्रेय और श्री नृसिंहसरस्वती भगवान की सुंदर और तेजस्वी मूर्ती स्थापन की गयी है | मनमोहक काले रंग की श्रीपाद पादुका है और साथ मे पास ही श्री दत्तात्रेय भगवान की काले रंग की मूर्ती और पादुका हमे दिखाई देती है | यहा का वातावरण हमे आनंद और शांती का अनुभव देता है |

मंदिर का समय

पिठापूरम मंदिर सुबह 5 बजे खुला होता है | 7 बजे पूजाविधी होती है और दोपहर 1 से 4 बजे के दौरान जाली के दरवाजे से बंद किया जाता है | शाम के 7 बजे श्रीपाद पालखी से मंदिर को तीन बार प्रदक्षिणा किया जाता है | इस समय मंदिर का वातावरण बहुत ही पवित्र और मन को शांती और आनंद देने वाला होता है | भगवान की पालखी को खूबसूरत फुलो से सजाकर उसमे भगवान श्रीपाद श्रीवल्लभ की सुंदर चांदी की मूर्ती रहती है | आरती के बाद यहा पर आये हुए भक्त को प्रसाद दिया जाता है | रात को 9 बजे मंदिर बंद कर दिया जाता है |

भगवान श्रीपाद श्रीवल्लभ जन्मतीथी के अनुसार मनाये जानेवाले उत्सव

1) श्रीपाद श्रीवल्लभ स्वामी जयंती
2) श्री दत्तजयंती
3)श्री गुरूद्वादशी
4) श्री कृष्णाष्टमी
5) श्री पू. वासूदेवानंद सरस्वती जयंती
6) गुरूपौर्णिमा

श्री दत्तात्रेय भगवान के तिनो अवतार एक ही ठिकाण है यह श्रीपाद श्रीवल्लभ महासंस्थान | यह भक्त के द्वारा नित्यसेवा, पालखी सेवा, बिल्वार्चना, तुलसीपत्र व ब्राह्मण भोजन जैसी सेवा की जाती है |

पिठापुरम पुराने काल से ही सिद्ध क्षेत्र माना जाता है | इसलीये ईसे पादगया कहा जाता है | यहा पर अप्पलराजु शर्मा व सुमती महाराणी इनके विवाह की आकशवाणी हुई थी, उस समय श्री कुक्कुटेश्वर शिवलिंग से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न हुई थी | इस पादगया मे मृत व्यक्ति का श्रद्धा से पिंडदान करने से आत्मा को मिलती है |

श्रीपाद श्रीवल्लभ चरित्र के अध्याय 6 और पन्ना क्रमांक 38 मे बताया गया है की, जब ब्राम्हण अप्पलराजा घर मे कालाग्निशमन दत्तात्रेय की पूजा करते समय दत्तात्रेय भगवान मूर्ती से मानव रूप मे बाहर आकर बाते किया करते थे और पूजा के बाद फिर से मूर्ती मे विलीन हो जाते थे | श्रीपाद श्री वल्लभ चरित्रामृत के अनुसार यह पिठमपूर महाक्षेत्र बनने वाला है | यहा पर चिटी जैसी भकतो की लाइन लगने वाली है | थोडी सी भी जगह खाली नही रहेगी | यह श्रीपाद जी की बात काले पत्थर की लकीर है |

श्री कुकुटेश्वर मंदिर, पीठापूर

पुराणी कहाणी के अनुसार राजा दक्ष प्रजापती आयोजित यज्ञ मे भगवान शिव को छोडकर सब देवता यक्ष गरूड, गंधर्व, किंपुरुषम, महर्षी, विष्णू, ब्रह्मदेव को आमंत्रित किया था | इसलीये शिवपत्नी और दक्ष कन्या सती देवी पिता से मिलने यज्ञ कार्यक्रम मे गंई | भगवान शिव को आमंत्रित क्यु नही किया पुछ्ने पर दक्ष प्रजापती ने भगवान शिव का अपमान किया | यह सब सती देवी को सहन नही हुआ और उन्होने यज्ञ मे अपना देहत्याग दिया |

pithapuram datta temple

भगवान शिव सती देवी का मृत शरीर कंधे पर लेकर तांडव कर रहे थे | तब भगवान विष्णू ने अपने सुदर्शन चक्र से मृत शरीर के खंड-खंड कर दिये | सतीदेवी के शरीर के खंड अन्य स्थान पर गिर गये | शरीर का पीठ का भाग पीठपुरम मे गिरा इस लीये ईसे “फुर हुत्तिका शक्ती पीठ” कहा जाता है | पहला नाम पीठिकापुर था अभि पिठापुर है | यह भगवान श्रीपाद श्रीवल्लभ का प्रिय स्थान है | ऊनका जन्म एक रहस्य है |

स्थान का माहात्म्य

भगवान श्रीपाद की बहन विद्याधरी, राधा, सुरेखा इनका विवाह यही पीठापुर मे हुआ था | त्रेतायुग मे भारद्वाज ऋषि ने पिठापूर मे सवित्रकाठकचयन यज्ञ किया था, उसका फल काशी निवास पिठापुर मे है | पीठापुर का खास पौराणिक महत्त्व है | यहा पर कुक्कुटेश्वर मंदिर के सामने 121 बाय 121 फिट का तालाब है, यहा पर मृत व्यक्ति का पिंडदान करने पर उसके आत्मा को मुक्ती मिलती है | मंदिर के पीचले भाग मे चार हाथ, तीन मुंह आश्चर्यकारक स्वयंभू श्रीदत्त मूर्ती मंदिर है | यह ‘ पुरुहुत्तिका ’ नाम से प्रसिद्ध है |

पादगया का इतिहास

पीठापूर एक सिद्धक्षेत्र है | सब देवता ने मिलकर गयासुर के शरीर पर यज्ञ किया था | उसक सिर गये मे था और पैर पीठपुर मे इसलीये ईसे पादगया कहा जाता है | गयासुर को भगवान और देवता ने सूरज उगने तक न उठने का आदेश दिया था लेकिन मध्यरात मे भगवान शंकर ने कुक्कुट का रूप लेकर बांग दी | सुबह हो गयी समजकर गयासुर उठ गया | देवता ने उसका उद्धार किया यही कुक्कुटेश्वर देवस्थान पिठापूर मे है |

पुरुहत्तिका शक्तीपीठ
प्रजापती दक्ष यज्ञ मे सती देवीने योगाग्नीने आत्मदहन करने पर भगवान शिव ने तांडव किया था, भगवान विष्णू ने सुदर्शन चक्र से मृतदेह के खंड खंड किये | वह अन्य स्थान पर जाकर गिर गये वह शक्ति पीठ बन गये | प्रमुख अष्टादश शक्तीपिठ मे से एक पुरुहत्तिका शक्तीपीठ यही पिठामपूर मे है |

pithapuram datta temple

श्री दत्त पादुका पीठापूर
श्रीपाद श्रीवल्लभ की पादुका यही पर है | भारत मे काशी मे बिंदुमाधव प्रयाग और वेणीमाधव, रामेश्वर मे सेतुमाधव, त्रिवेत्रम मे सुंदरमाधव और पिठापूर मे कुंतीमाधव ऐसी माधव की 5 मंदिर यही पर स्थित है |

पीठापुरम कैसे जाये

: पीठपुरम जाने के लीये कई साधन विकल्प है | ट्रेन या व्यक्तिगत वाहन या किराये पर गाडी लेकर जा सकते है |

रास्ते से : मुंबई – पुणे – सोलापूर मार्ग
मुंबई- पुणे-सोलापूर -हैद्राबाद -सूर्यपेठ -खम्मम -अस्वरावपेठ – राजमुंद्री -सामलकोट -पीठापूर )
मुंबई से हैद्राबाद 700 किलोमिटर का अंतर
हैद्राबाद से खम्मम 200 किलोमिटर काअंतर
खम्मम से राजमंद्री 172 किलोमिटर का अंतर
राजमुंद्री से पीठापूर 55 किलोमिटर का अंतर

मुंबई से पीठापूर तक का अंतर करिब 1150 से 1200 किलोमीटर तक का है |
पुणे ते पीठापूर तक का अंतर करिब 950 से 1000 किलोमीटर तक का है |

ट्रेन से : मुंबई-भुवनेश्र्वर कोणार्क एक्सप्रेस से सामलकोट जंक्शन तक का अंतर 1300 किलोमीटर का है | यही पर पीठापूर रेल्वे स्टेशन है | नजडीक का रेल्वे स्टेशन काकीनाडा और विशाखापट्टणम रेल्वे स्टेशन है | पीठापूर रेल्वे स्टेशन से मंदिर 5 मिनट के अंतर पर है |

आस पास घुमने की जगह

कुक्कुटेश्वर मंदिर, कुंती माधव मंदिर, काकीनाडा समुद्र किनारा, अन्नावरम् ( सत्यनारायण मंदिर ) पास मे ही राजमहेंद्री ( गोदावरी नदी ) है जहा आप जा सकते है |

पीठापूर के इन मंदिरो मे भी अवश्य दर्शन के लीये जाये :

1) कुंतीमाधव मंदिर
2) काशी येथे बिंदू-माधव
3) प्रयाग येथे वेणी-माधव
4) रामेश्वर येथे सेतू-माधव
5) त्रिवेंद्रम येथे सुंदर-माध
पीठापूर मे कुंती-माधव मंदिर है, इसे दक्षिण काशी नाम से भी जाना जाता है |

पिठापुर के आध्यात्मिक महत्वपूर्ण मंदिर

श्रीदत्त अनघालक्ष्मी मंदिर :
पिठापुर शहर से 3 किलोमीटर की दूरी पर यह श्रीदत्त अनघालक्ष्मी मंदिर है | यह बहुत ही सुंदर और बडा मंदिर है | भक्त लोगो द्वारा यहा पर अनघाष्टमी व्रत और पुजा की जाती है |

pithapuram datta mandir

अंतरवेदी मंदिर :
पीठापूर से 80 किलोमिटर अंतर पर वसिष्ठ नदी के पास श्री लक्ष्मी नृसिंह स्वामी का प्राचीन काल का मंदिर है | मंदिर मे ब्रम्हा, विष्णू और महेश स्वरुप मे भगवान दत्तात्रेय की त्रिमूर्ती है |

बिकोवोल मंदिर :
भगवान शिवजी का काकीनाडा से 35 किलोमीटर पर यह मंदिर स्थित है |

द्राक्षारामम मंदिर :
काकिनाडा से 25 किलोमीटर पर भिमेश्वरा स्वामी का प्राचीन मंदिर है | यही पर मणिक्यंबा नाम का देवी का मंदिर है, यह एक शक्तिपीठ भी है |

गोदावरी पुष्करम : ( राजमुंद्री )
राजमुंद्री के पास मे ही पुष्कराम तिर्थ है | इस राजमुंद्री मे श्री मार्कण्डेय ऋषीं का निवास स्थान था | उन्होने यही पर ग्रंथ भी लिखा था | भव्य मार्कण्डेय मंदिर है, यहा पर कुंभ का मेला रहता है | गोदावरी नदी के उस पार कोटीलिंगेश्वर का 10 वी सदी मे बनाया गया मंदिर है |

मंदापल्ली :
राजमुंद्री से 28 किलोमीटर पर भगवान शिव जी का मंदिर है | इस मंदिर को “मंडेश्वर स्वामी” मंदिर भी कहा जाता है |

रयाली :
राजमुंद्री से 35 किलोमीटर पर वशिष्ठ और गौतमी नदी पर ” जगम मोहिनी केशव स्वामी” का मंदिर है | मंदिर मे भगवान विष्णु और मोहिनी की काले पत्थर की पुरातन काल की मूर्ती है |यह बहुत ही सुंदर और महत्व का मंदिर है |

क्षेत्र अन्नावरम :
पीठापूर से 32 किलोमीटर की दूरी पर ” श्री वीरा सत्यनारायण मंदिर ” है | यह मुख्य मंदिर मे से एक है | यह ” रत्नागिरी डोंगर ” नामके पहाड मे स्थित है | उसके पास मे ही प्रभू श्रीराम, वनदुर्गा और कनकदुर्गा का मंदिर है | इस मंदिर मे जाने के लीये सुविधा उपलब्ध है | चेन्नई-हावडा रेल्वे लाईन पर ही अन्नावरम, रेल्वे स्टेशन से मंदिर 3 किलोमीटर की दूरी पर है | यह बहुत ही महत्वपूर्ण और लोकप्रिय मंदिर है |” त्रिपाद विभूती नारायण उपनिषद ” यह चार वेदो मे से अथर्ववेद का भाग है |

निष्कर्ष

पीठापूर दत्त मंदिर लोकप्रिय आध्यात्मिक स्थान है | यह मंदिर भगवान श्रीपाद श्रीदत्त को समर्पित है | आंध्र प्रदेश मे स्थित यह हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण आध्यात्मिक स्थान है | मंदिर मे आने वाले सभी यात्रीयो के लीये मंदिर संस्थान की सुविधा उपलब्ध है |

FAQ

मुंबई से पीठापुरम कैसे जाये ?

आप लोग मुंबई से पिठापुर तक मुंबई -पुणे – सोलापूर -हैद्राबाद -सूर्यपेठ -खम्मम -अस्वरावपेठ – राजमुंद्री -सामलकोट-पीठापूर मार्ग से जा सकते है |

पीठापुरम मे प्रसिद्ध क्या है ?
पीठापुरम मे भगवान श्रीपाद दत्त मंदिर प्रसिद्ध है |

क्या पीठापुरम मे शक्तिपीठ है ?
हां पीठापुरम मे ‘ फुर हुत्तिका शक्तीपीठ ‘ नामक शक्तिपीठ है |