Shani Shingnapur
Shani Shingnapur : इस आभासी संसार में रहने वाले हर मनुष्यों के जीवन मे सुख-दुःख आते रहते है | मनुष्य का मन और जीवन अस्थिर और चंचल रहता है | ऐसे जीवन में शनिदेव अवर्णनीय और शक्तिशाली भूमिका हमारे जीवन में निर्माण कर सकते है | दुनिया मे धन के प्रतीक कुबेर शक्ति हमे अपनी ओर खींच रही है | दुनिया के लोग वैज्ञानिक है, लेकिन वे अपनी ही बनाई हुई चीजों में गुम रहते है | आज पुरी दुनिया मे अमेरिका हर स्तर पर अपना प्रभाव पूरी दुनिया में फैला रहा है, लेकिन भारत के अध्यात्म और ज्योतिष विज्ञान ने इस पर अपना जादू कर दिया है |
महाराष्ट्र में अहमदनगर को संतों की भूमि माना जाता है, जब से निर्देशक-निर्माता आदरणीय गुलशन कुमार ने बहुत धूमधाम से सूर्य पुत्र श्री शनिदेव फिल्म की, रिलीज की और लोकप्रिय हुई | साथ ही, प्रसिद्ध गायिका श्रीमती अनुराधा पौधवा के प्रयासों से, जो भगवान शनिदेव को अपना भाई मानती है और शनिशिंगणापुर Shani Shingnapur को अपना मायका मानती है | उनके द्वारा शनिदेव से संबंधित ऑडियो-टेप बाजार में आई, तब से शनिशिंगणापुर की ख्याति पूरे महाराष्ट्र और भारत में ही नहीं, बल्कि पुरी दुनिया में फैल गई है |
परिचय
दुनिया भर से शनिशिंगणापुर Shani Shingnapur भगवान शनिदेव का दर्शन करने आने वाले शनि भक्तों को उनका दिव्य आशीर्वाद प्राप्त हुआ है | श्री शनेश्वर देवस्थान का शनिशिंगणापुर गांव बिना दरवाजे वाले घरों के शहर के रूप में दूर-दूर तक प्रसिद्ध हुआ है | इस से संबंधित कई चमत्कार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना स्थान बना चुके है | इसके अलावा भगवान का और क्या सबूत चाहिए ? अन्य धार्मिक स्थलों से बहुत संशयी भक्तगण आए और उन्होने धार्मिक ग्रंथ देखने की इच्छा जताई, उन्हें भी वही दिखाया गया जो सर्वदूर है | लेकिन वे इस बात से कभी संतुष्ट नहीं हुए |
महाराष्ट्र के उत्तर भारतीय हिंदी भाषी भक्तगण उन्हे अपनी हिंदी भाषा में धार्मिक ग्रंथ को देखना चाहते थे | जिसमें उन्हें सामाजिक, पारंपरिक, भौगोलिक, राष्ट्रीय-एकता और धार्मिक दृष्टिकोण की अपेक्षा थी लेकिन उनकी दृष्टी से शुरुआत में उन्हें निराशा हाथ लगी |
सब लोग दुसरे भगवान की पूजा करते समय उन्हे शनिदेव से डर लगता है | वे आपके मित्र हैं, शत्रु नही ! शनिदेव का नाम लेते ही लोगो के पसीने छूट जाते है | जीवन मे एक बार उनके दर्शन करके देख लीजिए उनका अनुभव लिजिए | फिर आप कभी अपने मन मे भगवान शनिदेव के प्रती डर को महसुस नही करेंगे | दुनिया भर से और अलग-अलग पदो पर स्थित केंद्र सरकार के अधिकारी, विद्वान वैज्ञानिक, राजनेता, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, पुलिसकर्मी, फिल्म और भारतीय संगीत जगत की बडी-बडी हस्तियाँ यहाँ आकर समर्पण करके पुरी श्रद्धा से भगवान का दर्शन करते है |
शनिदेव की स्वयंभू मूर्ती
शनि देव की मूर्ति, जो लोहे और पत्थर से बनी हुई प्रतीत होती है, जिसका रंग काला, ऊंचाई 5 फीट और 9 इंच और चौड़ाई 1 फीट और 6 इंच है और जो हमेशा गर्मी, ठंड और बारिश के संपर्क में रहती है | पूरे दिन और रात खुले में, स्थानीय बुजुर्गों से पता चला है कि लगभग 350 साल पहले, शिंगणापुर गाँव में इतनी भारी और लगातार बारिश हुई थी कि कोई सामने नहीं देख सकता था और पानी के बहाव में खेत डूब गए थे | उस बारिश मे बहकर इस गांव मे मूर्ती आयी थी |
कहानी और इतिहास ( Shani Shingnapur Temple )
Shani Shingnapur हमारे दैनिक जीवन में शनिदेव की कृपा और उनकी शक्ति का बहुत महत्व होता है | शनिदेव विश्व के नौ ग्रहों में सातवें स्थान पर स्थित है | पारंपरिक ज्योतिष में इसे अशुभ माना जाता है | ‘कागोल शास्त्र’ के अनुसार शनि की पृथ्वी से दूरी 9 करोड़ मील है | इसकी त्रिज्या लगभग एक अरब 82 करोड़ 60 लाख किलोमीटर की है | इसका गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से 95 गुना अधिक होता है | शनि ग्रह को सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में 19 वर्ष लगते है | अंतरिक्ष यात्रियों ने शनि के रंगों को सुंदर, मजबूत, प्रभावशाली और आंखों को लुभाने वाला माना है और इसके वलय में 22 उपग्रह आते है |
शनि की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से अधिक होती है | इसलिए जब हम अच्छे या बुरे विचार सोचते हैऔर योजना बनाते है, तो वे शनि की शक्ति के बल पर उन तक पहुंचते है | ज्योतिषीय दृष्टि से बुरे प्रभाव को अशुभ माना जाता है, लेकिन अच्छे कर्मों का परिणाम हमेशा अच्छा ही होता है | इसलिए हमें शनिदेव को शत्रु नहीं अपना मित्र समझना चाहिए | बुरे कर्मों के लिए वे साढ़ेसाती, विपत्ति और शत्रु है |
शनिदेव के जन्म के संबंध में अलग-अलग कथाएं प्रचलित है।
सबसे प्रमुख और मान्य कथा काशी खंड के प्राचीन ‘स्कंद पुराण’ में है, जो इस प्रकार है, भगवान सूर्य का विवाह दक्ष कन्या साधना से हुआ था | साधना भगवान सूर्य के तेज को सहन नहीं कर पाती थी और उसे लगता था कि तपस्या करके वह अपना तेज बढ़ा सकती है, या फिर अपनी तपस्या के बल पर वह भगवान सूर्य के तेज को कम कर सकती है | लेकिन भगवान सूर्य के लिए वह एक पतिव्रता पत्नी थी | भगवान सूर्य से उसे तीन संतानें हुई | एक वैवस्तहवा मनु ,दूसरे यमराज और तीसरी यमुना |
साधना अपने बच्चों से बहुत प्यार करती थी | लेकिन वह भगवान सूर्य के तेज से बहुत परेशान रहती थी | एक दिन उसने सोचा कि वह भगवान सूर्य से अलग होकर अपने माता-पिता के घर जाकर घोर तपस्या करेगी और यदि विरोध होता तो वह दूर एकांत में जाकर घोर तपस्या करती |
अपनी तपस्या के बल पर साधना ने अपनी एक छाया उत्पन्न की और उसका नाम सुवर्णा रखा और फिर उसी छाया का नाम सुवर्णा हो गया | छाया को बच्चों को सौंपने के बाद साधना ने उससे कहा कि छाया उसके बाद नारीत्व का निर्वाह करेगी और उसके तीनों बच्चों का पालन-पोषण करेगी | उसने कहा कि यदि कोई समस्या आए तो वह उसे बुलाए और वह दौड़ी-दौड़ी उसके पास आएगी | लेकिन उसने उसे सावधान किया कि उसे याद रखना चाहिए कि वह साधना नहीं छाया है और यह भेद किसी को पता नहीं चलना चाहिए |
Shani Shingnapur साधना ने अपनी जिम्मेदारियां छाया को सौंप दी और अपने माता-पिता के घर चली गई | उसने घर जाकर अपने पिता से कहा कि वह भगवान सूर्य के तेज को सहन नहीं कर सकती | इसलिए वह अपने पति को बताए बिना ही चली आई है | यह सुनकर उसके पिता ने उसे बहुत डांटा और कहा कि बिना बुलाए यदि बेटी घर लौटी तो उसे और उसके पिता दोनों को ही श्राप लगेगा |
उन्होंने उसे तुरंत अपने घर वापस जाने को कहा | तब साधना को चिंता होने लगी कि यदि वह वापस चली गई तो छाया को दी गई जिम्मेदारियों का क्या होगा | छाया कहां जाएगी ? और उनका रहस्य उजागर हो जाएगा | इसलिए साधना उत्तर कुरुक्षेत्र के घने जंगलों में चली गई और वहीं विश्राम करने लगी |
युवावस्था और सुंदरता के कारण वह जंगल में अपनी सुरक्षा को लेकर भयभीत थी और उसने घोड़ी का रूप धारण कर लिया ताकि कोई उसे पहचान न सके और तपस्या शुरू कर दी | यहा दूसरी ओर भगवान सूर्य और छाया के मिलन से तीन संतानें उत्पन्न हुई | भगवान सूर्य और छाया एक दूसरे के साथ खुश थे | सूर्य ने कभी किसी बात पर संदेह नहीं किया और छाया की संतानें मनु, भगवान शनि और पुत्री भद्रा ( ताप्ती ) थी |
Shani Shingnapur दूसरी कथा के अनुसार, भगवान शनि की उत्पत्ति महर्षि कश्यप के महान ‘यज्ञ’ का परिणाम थी | जब भगवान शनि छाया के गर्भ में थे, तब शिव भक्तिनी छाया भगवान शिव की तपस्या में इतनी लीन थी कि उन्हें अपने भोजन की भी परवाह नहीं थी | तपस्या के दौरान उन्होंने इतनी गहनता से प्रार्थना की कि उनकी प्रार्थना का उनके गर्भ में पल रहे बच्चे पर गहरा प्रभाव पड़ा |
तामिलनाडू का शिव मंदिर : पढिये
छाया की इतनी बड़ी तपस्या के परिणामस्वरूप, तपती धूप में बिना भोजन और छाया के, भगवान शनि का रंग काला हो गया | जब भगवान शनि का जन्म हुआ, तो सूर्य उनके काले रंग को देखकर हैरान हो गए और उन्हें छाया पर संदेह होने लगा | उन्होंने छाया का अपमान करते हुए कहा कि यह उनका पुत्र नहीं है |
जन्म से ही, भगवान शनि को अपनी माँ की तपस्या की महान शक्तियाँ विरासत में मिली | उन्होंने देखा कि उनके पिता अपनी माँ का अपमान कर रहे है | उन्होंने अपने पिता को क्रूर दृष्टि से देखा | परिणामस्वरूप उनके पिता का शरीर काला पड़ गया | भगवान सूर्य के रथ के घोड़े रुक गए और रथ आगे नहीं बढ़ रहा था | चिंतित होकर भगवान सूर्य ने भगवान शिव को पुकारा और भगवान शिव ने भगवान सूर्य को सलाह दी और उन्हें बताया कि क्या हुआ था | यानी, उनके कारण माँ और बच्चे का सम्मान कलंकित और अपमानित हुआ |
भगवान सूर्य ने अपनी गलती स्वीकार की और क्षमा मांगी और अपने पहले के गौरवशाली रूप और अपने रथ के घोड़ों की शक्ति को पुनः प्राप्त किया | तब से, भगवान शनि अपने पिता और माता के लिए एक अच्छे पुत्र और भगवान शिव के एक उत्साही शिष्य बन गए | Shani Shingnapur
गांव की जानकारी ( Shani Shingnapur Maharashtra )
इस शनि शिंगणापुर Shani Shingnapur गांव के सभी लोग छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज है | इनके नाम जैसे दरंदले, बानकर, शेटे और बोरुडे नाम से जाने जाते है | गांव मे अन्य नाम और जाती के लोग बहुत कम है | गांव वैसे छोटा है, लेकिन अपने नाम और पहचान के लिए प्रसिद्ध है | गांव मे आपको बिना दरवाजे और खिड़कियों वाले घर देखने को मिल जाएंगे यही इस गांव की खासियत है | इन चार परिवार के लोग अपने परिवारों के बच्चों के बीच विवाह करके एकदुसरे रिश्तेदार बन गए है |
इस गांव के लोग अपनी प्राचीन रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और त्योहारों को उत्साह और बडी खुशी के साथ मनाता है | इस गांव और मंदिर मे आने के लीये अच्छी सड़कें है | भक्तगण यहा बसों, कारों और ऑटोरिक्शा से आ सकते है | गांव के लोगो मे किसी प्रकार का व्यसन नही है | शराब, जुआ और मांसाहार का कोई निशान नहीं है | यहा के लोग भरोसेमंद है इसलीये यहा कभी घर मे चोरी नही होती | यहां के घरों में दरवाजे और खिड़कियां देखने नही मिलती है | इसलीये लोगो के दिमाग की खिड़कियां हमेशा खुली रहती है | लोग यहा पर आने वाले यात्री और मेहमानों का बहुत आदर सत्कार करते है |
गांव के भगवान शनिदेव ही स्वामी और भगवान है | ऐसा माना जाता है की, जो बोता है, वही काटता है और कर्मों का फल उसे तुरंत मिलता है | गांव मे खिड़कियां, दरवाजे के स्टॉपर, जंजीरें, सूटकेस, कुंडी, ताले जैसी चीजो का उपयोग नही होता है | यहा की मान्यता है, भगवान शनिदेव की खुद की इच्छा है कि यहा गांव मे ताले का उपयोग न किया जाये |
गांव के लोगो मे विश्वास और श्रद्धा है की, उनकी, उनके घरों की और गांव की सुरक्षा भगवान शनिदेव करते है | लोगो का यह मानना है की भगवान ने उन्हे खुद कहा है, “तुम अपने घर के अंदर और बाहर पूरी तरह से निश्चिंत रहो | तुम्हारा कुछ बुरा नही होगा, तुम्हारी और तुम्हारे घरों की रक्षा मै खुद करूंगा” |
भगवान शनिदेव के भरोसे से यहा पर घर के दरवाजे, खिड़कियां और ताले नहीं लगाए जाते | इसलीये इस गांव को दुनिया की नजर मे अलग ही विशेषता है | आमतौर पर देखा जाये तो, दुनिया में चोरी बहुत होती है, जहा पर ताले लगे होते है | लेकिन शनिशिंगणापुर Shani Shingnapur गांव में कई सालों से घरों में दरवाजे और ताले नहीं लगाये जाते है | यह गांव की परंपरा पीढ़ियों से लोग देख रहे है |
यहाँ होने वाली हर कोई घटना जैसे दुर्भाग्य, चोट, बीमारी या प्राकृतिक नुकसान यह सब, भगवान शनिदेव की इच्छा से ही हुआ ऐसा माना जाता है | यहाँ जो कुछ होता है, वह सब भगवान शनि के आशीर्वाद और लोगो की आस्था से होता है | अगर कोई पापी यहाँ कोई पाप या किसी प्रकार का गलत व्यवहार करता है, तो भगवान शनि उसे दंडित करते है | कोई व्यक्ति और भक्त गलती से भी कोई चीज़ ले जाता है, तो वह वस्तु और चीज भगवान शनिदेव चमत्कार से व्यक्ति ली हुई चीज को वापस आकर वह वस्तु वापस कर देते है |
परदेश में शनिशिंगणापुर का महत्व
Shani Shingnapur पुरे भारत देश मे भगवान शनिदेव की महिमा प्रचलित है, लेकिन अभि के समय मे यह महिमा परदेशों में भी चमत्कृत हुआ है | तो हम आपको इसके बारे मे सविस्तर रूप से परदेश के भक्तो को हुए चमत्कार के बारे मे बताते है |
झिम्बाब्वे के एक भारतीय शनिभक्त श्री जयेश शहा भगवान शनिदेव के सामने काफी नतमस्तक होते है | और बार बार वे भारत में झिम्बाब्वे से सिर्फ श्री शनिदर्शन के लिए ही शिंगणापुर गांव में आते है |
उनके साथ हुआ यह था ; शनिभक्त श्री जयेश शहा का वहाँ आयात निर्यात का बड़ा कारोबार था | लेकिन वे वक्त के फेर मे अटक गए , बिज़नेस ठप हो गया था उनकी सारी संपदा तालेबंद हुई थी | अंत मे वो भारत मुम्बई आए ,उन्होने अपनी कुण्डली देखी और ज्योतिष शास्त्र के उपाय अनुसार वे शनिदेव की आराधना करने शिंगणापुर आए | उन्होने स्वयंभू शनिदेव मूर्ती की पूजन और अर्चन की और अभिषेक किया | इसके बाद उनकी स्थिति मे थोड़ी थोड़ी सुधार आ गयी | अच्छा काम शुरू हुआ, फिर से कारोबार बढने लगा, पहले जैसी ही स्थिति झिम्बाब्वे में फिर बन गयी |
उन्होने शिंगणापुर Shani Shingnapur गांव यहाँ आकर भगवान शनिदेव को कबुल किया और सर्व प्रथम देवस्थान के लिए ८ लाख रुपये की अॅम्बुलन्स भेट स्वरूप मे दे दी | वे स्वयं कबूल करते है की, मेरी परिस्थिति भगवान शनिदेव के कारण ही सुधरी ; अन्यथा मै कर्जदार बनकर आत्महत्या करने वाला था | अब वे बार बार केवल दर्शन के लिए शनैश्चर भगवान के पास झिम्बाब्वे से यहाँ आते है |
झिंबाम्बे के समान ही और एक स्वित्ज़रलैंड का भी एक शनिभक्त का अनुभव है | हमारे हिन्दी सिनेमा के अभिनेता और विरार का सांसद श्री गोविंदा आहूजा का है | सन १९९६ में वे वहाँ शूटिंग के लिए गए थे , लेकिन पता नहीं उन्हें क्या दृष्टांत हुआ, उन्होंने वहाँ से शूटिंग छोड दी और सिधे स्वित्ज़रलैंड से शनि शिंगणापुर दर्शन के लिए आए थे | हेराणी की बात यह कि, दर्शन कर वे फौरन वापस स्विजरलैंड चले गए, अर्थात यह सारा श्री शनिदेव का ही करिश्मा है जो विदेशों से भी अपने भक्तो कों दर्शन के लिए ले आए है |
मंत्री सुनिल दत्त भी अपने बेटे अभिनेता संजय दत्त का टाडा जेल से मुक्ति के बाद सबसे पहले दोनों यहाँ पर दर्शन के लीये आए थे | शनिदेव का दर्शन करने के लीये श्रीदेवी, अमरीश पूरी, रणधीर कपुर, रूशी कपुर , व्यंकटेश प्रसाद , गुजरात के मुख्यमंत्री और भारत के पंतप्रधान मा. श्री नरेंद्र मोदी जी जैसे कई दिग्गज यहाँ आकर दर्शन करके आशीर्वाद ले चुके है |
कर्मों के देवता शनिदेव
हमारे कर्मों में शनिदेव की क्या भूमिका होती है ? हमारे जीवन दर जीवन, युग दर युग और हमारे विचारों और कर्मों में हमें दंड भोगना चाहिए और प्रार्थनाओं से खुद को शुद्ध करना चाहिए |
भय के कारण ही लोग अपने घरों में शनिदेव की तस्वीरें या कोई और चीज नहीं रखते | अपने बुरे कर्मों के लिए शनिदेव को दोष देना उनकी आदत बन गई है |
लेकिन सच तो यह है कि अपने बुरे कर्मों के कारण हम शनिदेव को दोष देते है | शत्रु के साथ हमेशा भय जुड़ा रहता है और शत्रु कभी हमारा भला नहीं करता | लेकिन शनिदेव अपने भक्तों का भला ही करते है | इसलिए यह अजीब बात है कि जब हम गलती करते है, तो हम भयभीत हो जाते है |
मंदिर का समय ( shani shingnapur temple timings )
Shani Shingnapur शनि भगवान का यह मंदिर दर्शन के लीये 24 घंटे खुला रहता है | आप कभी भी मंदिर मे आकर भगवान के दर्शन कर सकते है | मंदिर मे प्रवेश के लीये कोई शुल्क नही लिया जाता | प्रवेश नि:शुल्क होता है |
शनि शिंगणापुर कैसे पहुंचे
औरंगाबाद और अहमदनगर एनएच संख्या 60 पर घोडेगांव मे उतरें और शनिशिंगनापुर Shani Shingnapur वहां से 5 किलोमीटर अंतर की दूरी पर है | मनमाड – अहमदनगर एनएच संख्या 10 पर राहुरी गांव मे उतरें और शनिशिंगनापुर वहां से 32 किलोमीटर अंतर दूर है | वहां से, बस-शटल सेवा का लाभ ले सकते है | वहां से, कोई राज्य परिवहन बस सेवा, टैक्सी, बस सेवा से शिंगणापुर पुहुंच सकते है |
ट्रेन द्वारा
भारत के किसी भी कोने से कोई भी व्यक्ति शनिशिंगनापुर Shani Shingnapur तक की यात्रा ट्रेन द्वारा कर सकता है | इसके लिए आगे सुझाए गए रेलवे स्टेशन अहमदनगर, राहुरी, श्रीरामपुर और बेलापुर इन रेलवे स्टेशन तक पहुंचकर आप शनिशिंगनापुर के लिए एस.टी. बसें, जीप, टैक्सी करके मंदिर तक पहुंच सकते है |
हवाई मार्ग से
विदेश से या मुंबई वा अन्य राज्यों से औरंगाबाद या पुणे हवाई मार्ग से यहा आने पर, शनिशिंगनापुर तक एस.टी. बस, जीप, टैक्सी की सुविधाएँ उपलब्ध है | इनका उपयोग करकर आप शनि शिंगणापुर पहुंच सकते है |
सडकमार्ग
औरंगाबाद-अहमदनगर राज्यमार्ग क्र. 60 पर घोडेगाव में उतरकर वहाँ से 5 की.मी. अंतर पर शनि शिंगणापुर या मनमाड – अहमदनगर राज्यमार्ग क्र 10 पर राहुरी मे उतरकर वहाँ से 32 की.मी. अंतर पर शनि शिंगणापुर Shani Shingnapur है | आप वहाँ से बस-शटल सर्व्हिस से शनि शिंगणापुर आ सकते है | और वहाँ से शनि शिंगणापुर आने जाने के लिए एस.टी. बस, जिप टैक्सी सेवा उपलब्ध होती है |
महिलाओं की भूमिका
शनि शिंगणापुर Shani Shingnapur गांव के सबसे पहले देवस्थान अध्यक्ष स्वर्गीय भाऊराव बानकर थे | उनकी पत्नी श्रीमती रुक्मिणी देवी ने कुछ वास्तविक अनुभव बताए है | उन्होने उनके पति को शनिदेव के कुछ
अजीबोगरीब अनुभव देखने को मिले थे | एक चोर ने उनकी बेटी जयश्री के पैर से पायल चुरा ली थी, और उसने सोने की चेन भी काट ली |
लेकिन कुछ समय बाद वह खुद ही वापस आ गया और उसने पायल और सोने की चेन देकर भाग गया | उन्होने और बताया की, उनका संयुक्त परिवार है और यहाँ कोई दरवाज़ा या ताला नहीं है और सभी चीज़ें खुले में रखी जाती है | लेकिन आज तक कोई चोरी या नुकसान नही हुआ | मेरी बहू और दूसरों से हमारा कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ | शनिदेव की कृपा से हम सब स्वस्थ और खुशहाल से यहा रहते है | हाल ही मे समाज सेविका तृप्ती देसाई ने कोर्ट मे केस लढकर महिलाओं को शनिदेव की मूर्ती स्थापन की गयी चबुतरे पर चढकर दर्शन करने की अनुमति दे दि गयी है |
क्या महिलाओं के साथ अन्याय हुआ ?
भगवान शनिदेव संबंधित जितनी भी किताबें उन सबमे महिलाओं के बारे में कोई ज़िक्र नहीं किया गया है | उनके अनुभवों की भी कोई गुंजाइश नही है | क्या यह महिलाओं के साथ अन्याय है ? यहा तक की उन्हे शनिदेव के मूर्ती के चबुतरे पर भी जाने की अनुमति नही है | इस मंदिर के पास रहने वाली सबसे बुजुर्ग महिला श्रीमती विथादेवी यशवंत बोरुडे की उम्र 100 वर्ष से अधिक है, उन्हे इस बात को पूछने पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा, “मेरे मन में इस बारे में बिल्कुल कोई शिकायत नहीं है, कोई संकोच नहीं है, मैं हमेशा खुश रहती हूं |
मेरे पति और बच्चे ने चबुतरे पर जाकर दर्शन किये, तो यह मेरे दर्शन करने के समान ही है | उनमें और हम महिलाओं में ऐसा कोई अंतर नही है | चाहे दर्शन भगवान के पास से हो या दूर से आस्था और दर्शन प्रसन्न मन से किये जाते है | हम जब हम यहां नीचे से भगवान का दर्शन करते है, तो हमें मन की शांति मिलती है |
तो दोस्तों, आपने देखा है कभी ऐसा गांव या ऐसा मंदिर ? विठादेवी के घर में भी चोर घुस आए थे उनके बर्तनों में सोना और पैसा था | चोरो ने बहुत खोजा लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला और अंत में वे चले गए | उन्होंने कहा की एक बार दो चोरों ने मंदिर से साइकिल चुरा ली और भागने लगे, लेकिन अंत में वे घूम-घूम कर वापस मंदिर मे ही पहुंचे | वो उस साइकिल मंदिर के पास ही छोड़ कर चले गए थे |
श्रीमती पार्वतीदेवी दरंदले उन्होंने भी बड़ी विनम्रता के साथ अपना अनुभव बताया | मंदिर परिसर की नींव पर महिलाओं को जाने की अनुमति क्यों नहीं है, उनसे पूछने पर उन्होंने कहा की, “हमारे यहां परंपरा है कि नींव से दर्शन के लिए महिलाओं को जाने की अनुमति नहीं है, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है ? हम यहां नीचे से भी हाथ जोड़कर दिल से प्रार्थना करते है, तो इसमें ‘वहां से’ क्या, ‘ यहां से ‘ क्या ! एक ही बात है | मन साफ हो तो कहीं से भी गंगा मिल जाती है | मन में श्रद्धा रखकर मैं प्रार्थना करने पर गंगा जी को कहीं से भी खोजा जा सकता है |”
श्री प्रमोद होनाराव पिछले 30 सालों से शनिशिंगणापुर Shani Shingnapur में दर्शन के लिए आते है, जो पुणे के सीआईडी इंस्पेक्टर रहे है | वो सन1991 से वे भगवान शनि की पालकी भक्तों को पंढरपुर में एक समय का भोजन दान देते है |
मुंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यहां शनि भगवान के दर्शन के लिए आना चाहते थे | लेकिन किसी न किसी कारण से इसे टालते रहे | लेकिन भगवान के चमत्कार से पिछले साल उनकी कार चोरी हो गई थी और चोरों ने कार को शिंगणापुर के पास के प्रवरा संगम नदी पर छोड़ दिया था | जब न्यायाधीश को पता चला कि कार वहां है, तो वे भागे-भागे आए और गाड़ी लेकर तुरंत यहां दर्शन के लिए आ गए | यहा सभी का यह मानना है, कि भगवान शनि ने स्वयं उन्हें दर्शन के लिए यहां पर बुलाया था |
शनिशिंगणापुर की चार किंवदंतियां
भगवान हैं, लेकिन मंदिर नहीं है
घर है, लेकिन दरवाजा नहीं है
पेड़ है, लेकिन छाया नहीं है
भय तो है, पर शत्रु नहीं
भगवान तो है, पर मंदिर नहीं
शनि शिंगणापुर Shani Shingnapur मे भगवान शनिदेव के उपर किसी भी चीज की छाया नही होती है | शनिदेव खुद ही किसी की छाया मे नही रहना चाहते | इसलीये इनकी मूर्ती के उपर किसी भी प्रकार की छत नही है | प्रकृति की रक्षा करने और दुष्ट राक्षसों का नाश करने के लिए शनि भगवान ने अनेक अवतार लिए है, भक्तों की रक्षा के लिए भगवान ने ऐसा किया है | चाहे बारिश हो, धूप हो, ठंड हो या तूफान, या कोनसा भी मौसम हो, बिना छत के शनिदेव यहा दिन-रात यहां खड़े रहते हैऔर शिंगणापुर के लोगों और दर्शन आने वाले की रक्षा करते है |
जिन्होने भी छत बनाने की पूरी कोशिश की, वो सब असफल हुए, और भी किसी ने ऐसा प्रयास किया उसे नुकसान हुआ | शनि भगवान भक्तों को हर समय और हर हालत मे दर्शन देते है | इसलीये यहा भगवान तो है, लेकिन मंदिर नही है | यह भारत मे ऐसी जगह है या धार्मिक स्थल है, जहा भगवान है, लेकिन मंदिर या छत नही है |
शिंगणापुर वासी के लोगों से चर्चा करने पर, उन्होंने कहा कि भगवान शनिदेव उनके सपनों में आए और कहा कि उन्हें छत की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है | यहां का माहौल दैवीय पूजा स्थल है |
भारत के अन्य विभिन्न भागों में देवताओं के मंदिर है, लेकिन यहां भगवान शनि का कोई विशेष मंदिर नहीं है, शायद वे अपने भक्तों की रक्षा और सहायता करने के दैवीय उद्देश्य से ही भगवान शनि सभी के लिए खुले है | इसलिए वे कहते हैं कि यहां भगवान तो हैं, लेकिन मंदिर नहीं है।
घर है, लेकिन दरवाजा नही
घर ऐसा स्थान है, जहा पर व्यक्ति अपने जीवन का आधे से ज्यादा वक्त गुजारता है | घर मे सारी सुख सुविधा उपलब्ध होती है | इसलीये वह सुकून, शांती और बेफिकर रहता है | लेकिन शनि शिंगणापुर Shani Shingnapur ऐसा गांव है, जहा के घरो को ताला तो क्या दरवाजा भी नही है | दरवाजे-खिड़कियां ही नहीं हैं, तो वहां ताले-कुंडी का सवाल ही नही आता | जैसे घरों में दरवाजे नहीं हैं, वैसे ही वहा के लोगो के मन में भी दरवाजे नहीं है और वे हमेशा खुले रहते है |
शिंगणापुर Shani Shingnapur और उसके पास के 16 वर्ग किलोमीटर में 160 हेक्टेयर क्षेत्र में ऐसे घर हैं, जिनमें दरवाजे और खिड़कियां नहीं है | कुत्तों और बिल्लियों से घर को बचाने के लीये बक्से रखे जाते है या कपडे के परदे लगाये जाते है | गांव छोटा है, लेकिन यहा का वातावरण मन की प्रसन्न करने वाला होता है | यहा के घरो की सुरक्षा खुद भगवान करते है |
पेड़ है, लेकिन छाया नही
भगवान शनि की मूर्ति के उत्तर दिशा में बडा नीम का पेड़ था लेकिन उसकी छाया मूर्ती के उपर पडते ही शाखाएं जलकर राख हो जाती थी या टूटकर जमीन पर गिर जाती थी | लेकिन इन शाखा के जलने और गिरने से कभी किसी को कोई नुकसान या हानी नही हुई | इसलीये इस पेड़ की छाया कभी भी मूर्ति पर नहीं पडती और कहा जाता है, की यहा पेड़ तो है, लेकिन छाया नही |
पहले के समय मे यहां पर एक चमत्कार हुआ था | इस नीम के पेड़ पर बिजली गिरी, उस समय वहा बारात आ रही थी, हालांकि वहां किसी को कोई नुकसान नही हुआ, लेकिन पेड़ जड़ से जल गया था | यह पेड़ पुरे 12 घंटे तक जल रहा था | आग बुझाने की पुरी कोशिश की गयी, लेकिन यहा अजीब घटना हुई | अगले ही दिन जला हुआ पेड हरा-भरा हो गया | इसलिए यहां के लोगों का मानना है कि भगवान शनि सर्वशक्तिमान और हमेशा मौजूद और उनकी रक्षा करने वाली दिव्य शक्ति है |
डर है, लेकिन दुश्मन नहीं
यह सबसे खास कथा है | निराधार आशंका लेकर भगवान शनि को गलत तरीके से हमारे दुश्मन के रूप में पेश किया गया और गलत समझा गया है | लेकिन विश्वास के साथ कहती हू, भगवान शनि हमारे दुश्मन नहीं बल्कि हमारे मित्र है | शास्त्रों में यह गलत कहा जाता है, साढ़े साती के कारण लोग दुख, कष्ट, हानि, दुख, दुर्भाग्य, जुआ और बहुत सी बुरी चीजों में फंस जाते है | लेकिन यह केवल एक कारण से सच हो सकता है; जैसा बोओगे वैसा ही पाओगे | प्रकृति के नियमों के अनुसार, यदि कोई स्वार्थी गलत काम करता है, तो उसे उसकी कीमत चुकानी ही पड़ती है इसमे उसकी कोई छुट नही मिलती |
मौन, अवसाद, निराशा और बुरे विचारों में डूबे रहना और दूसरों से संवादहीन होना, ये सब हमारे मन की स्थिति होती है इसमें शनिदेव का कोई दोष नही | वास्तव में, वे हमारे दुश्मन नहीं बल्कि हमारे मित्र है | आम लोगों की नजर में, इसे एक दुष्ट ग्रह के रूप में देखा जाता है जो हमें नष्ट कर देता है, लेकिन, पंडित श्याम सुंदर लाल वत्स ने यह साबित करने के लिए व्यापक शोध किया है | शनि ग्रह अन्य अनुकूल ग्रहों की तुलना में बहुत अधिक अच्छे प्रभाव प्रदान करता है |
यह सच है कि हमारे मन में शनिदेव का डर छिपा होता है | लेकिन कब ? केवल तभी जब हम बुरे कर्म करते है तब | अन्यथा, वे हमारे मित्र है, एक ऐसा मित्र जो हमें अच्छी सलाह देकर आगे बढ़ाता है | हमे अपने जीवन मे कभी भी चोरी, डकैती, बुरे विचार, व्यभिचार, बुरी आदतें और झूठ नहीं बोलना चाहिए | अगर कोई भटक जाता है, तो शनिदेव उसके अनुसार दंड देते है | अगर वे किसी व्यक्ति पर प्रसन्न होते है, तो वे समृद्धि, धन, यश और जीवन को सुखमय बनाते है | इसलिए वे हमारे मित्र हैं, शत्रु नही |
मंदिर के बारे मे महत्वपूर्ण जानकारी
शनि मंदिर मे प्रवेश करने पर मार्गदर्शन के लिए स्वागत कक्ष उपलब्ध है |
मंदिर देवस्थान दर्शन के लीये 24 घंटे खुला रहता है |
अगर आपकी आर्थिक स्थिति ठीक है, तो आप लगभग 10 से 20 रुपए की पूजा सामग्री खरीद सकते है | अथवा केवल हाथ जोड़कर प्रार्थना करना ही पर्याप्त होता है | मंदिर की नींव पर जाने से पहले स्नान करने के लिए स्नानगृह की सुविधा उपलब्ध है | पूजा सामग्री देने वाले विक्रेताओं के पास पंचा ( पूजा के लिए पहना जाने वाला वस्त्र ) मिलता है |
यहाँ पूजा-अर्चना करने की कोई बाध्यता नहीं है |
यहाँ आने पर भक्तों के ठहरने की व्यवस्था के बारे में कार्यालय में पूछताछ की जा सकती है और संतुष्ट होने पर ही अपना नाम दर्ज कराया जाता है | 24 घंटे के लिए 3 बिस्तरों वाले साफ-सुथरे कमरे का किराया 100/- रुपए होता है | सामान्य कमरे में यदि आपका अपना बिस्तर है, तो वह निःशुल्क रहता है | अन्यथा गद्दे के लिए 10 रुपये और कंबल के लिए 5 रुपये का शुल्क लिया जाता है |
वाहनों के लिए पार्किंग की व्यवस्था है |
दर्शन और प्रसाद की बहुत अच्छी व्यवस्था है | प्रसादालय- सुबह 10.30 से 3.00 बजे और शाम को 6.00 से 9.00 बजे तक 10 रुपये प्रति व्यक्ति के कूपन उपलब्ध है |
यहां चोरी नही होती, इसलिए चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है |
अभिषेक के लिए कम से कम 11 रुपये देने होंगे |
शनिदेव की सामूहिक महाआरती सुबह 4.30 बजे और सूर्यास्त के बाद शाम 6.30 बजे होती है |
देवस्थान कार्यालय के अलावा, जहां आपको किसी भी चीज के लिए पैसे की रसीद लेनी होगी, कृपया किसी और को पैसे न दे |
दान के लिए मंदिर परिसर में एक हुंडी और एक बक्सा है |
यहां केवल पुरुषों के लिए स्नान करके गीले कपड़े पहनकर देवता के दर्शन की व्यवस्था है, जबकि महिलाएं फाउंडेशन से ही दर्शन कर सकती है |
भक्तों की चिकित्सा देखभाल के लिए यहां शनि देवता अस्पताल है | शौचालय से बाहर निकलते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वे अपने शरीर को स्वस्थ रखें |