Chilkigarh Kanak Durga Temple चिल्किगढ़ का कनक दुर्गा मंदिर एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। इस मंदिर की कहानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका ब्राह्मण रामचंद्र सारंगी की है। यहाँ के कुछ लोग मानते हैं कि कनक दुर्गा वास्तव में देवी चंडी हैं। वह शक्ति और ऊर्जा की देवी मानी जाती हैं। पहले इस मंदिर को ‘बारामहल’ के नाम से जाना जाता था।
कुछ साल बाद राजा कमलकांत ने इस मंदिर को स्थानांतरित करने की योजना बनाई। लेकिन एक रात राजा को स्वप्न में देवी कनक दुर्गा दिखाई दीं। उन्होंने नीली साड़ी पहनी हुई थी और उन्होंने राजा को मंदिर न हटाने का आदेश दिया। तब से इस क्षेत्र में राजा के परिवार की महिलाएँ नीली साड़ी नहीं पहनतीं। परंपरा के अनुसार, केवल ‘सारंगी’ उपनाम वाले ब्राह्मण ही इस मंदिर के पुजारी बन सकते हैं। यह मंदिर दक्षिण दिशा में स्थित है।

चिल्किगढ़ कनक दुर्गा टेम्पल
मंदिर के सामने एक 400 साल पुराना बरगद का पेड़ है। यह पेड़ समय का साक्षी बना हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के सामने एक बड़ा पत्थर था। कुछ लोगों का मानना है कि यह कोई साधारण पत्थर नहीं, बल्कि एक गुप्त द्वार की चाबी है। यह गुप्त स्थान केवल सारंगी ब्राह्मणों के लिए ही खुलता है।
इस जंगल में कई छोटे-छोटे शिव मंदिर भी स्थित हैं। एक कथा के अनुसार, ये मंदिर एक ही रात में धरती से प्रकट हुए थे। एक और कहानी देवी महामाया से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि मंदिर का पुजारी रात में जंगल से लौटने में डरता था। लेकिन देवी महामाया ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह उनकी रक्षा करेंगी, बशर्ते पुजारी पीछे मुड़कर न देखें। इसी विश्वास के साथ पुजारी निडर होकर जंगल से आते-जाते थे।

चिल्किगढ़ का ऐतिहासिक महत्व
चिल्किगढ़ का इतिहास ढालभूम के इतिहास से जुड़ा हुआ है। ढालभूम के राजा मूल रूप से मध्य प्रदेश के उत्तर-पश्चिम भाग से आए थे। उनके पहले राजा सूर्यवंशी रामचंद्र थे। उनके पुत्र बीरसिंह के दो पुत्र थे – गुंधर सिंह और जगतदेव सिंह। भाइयों में विवाद हुआ और जगतदेव सिंह अपना घर छोड़कर बिहार के जंगलों में आ गए। उन्होंने वहाँ के राजा ढबालदेव को हराकर उस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
ढबालदेव की रानी के अनुरोध पर, जगतदेव सिंह ने उनके सम्मान में अपना नाम बदलकर ‘ढबालदेव’ रख लिया। बाद में, राजा जगन्नाथ देव ढबालदेव के रूप में प्रसिद्ध हुए।
जंगलमहल और चिल्किगढ़ का संबंध
जगतदेव जंगलमहल के राजा गोपीनाथ के संपर्क में आए। राजा गोपीनाथ ने अपनी बेटी सुवर्णमणि का विवाह राजा जगन्नाथ से कर दिया। इस विवाह से जंगलमहल और ढालभूम के बीच संबंध मजबूत हुए। बाद में, चिल्किगढ़ के राजा मंगोबिंदो बने, जिनका शासनकाल ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है। उन्होंने 30 वर्षों तक शासन किया।
मंगोबिंदो को भारतीय कला और संस्कृति में गहरी रुचि थी। चिल्किगढ़ में विभिन्न जातियों और समुदायों के लोग रहते थे, जिन्होंने अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखी। यहाँ ब्राह्मणों के साथ-साथ बागड़ी, बाउरी, डोम और संथाल जनजातियाँ भी रहती थीं।
देवी महामाया और मंदिर की स्थापना
मुख्य कथा एक स्वप्न से जुड़ी है। राजा गोपीनाथ को एक रात स्वप्न में देवी महामाया ने दर्शन दिए और मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया। अगली सुबह, राजा को दो यात्री मिले, जिन्होंने भी वही सपना देखा था। ये यात्री मूर्तिकार जोगेंद्रनाथ कामिल्या थे।

मंदिर की वास्तुकला और संस्कृति
मंदिर की वास्तुकला उड़ीसा शैली से प्रेरित है। यहाँ पत्थरों पर विभिन्न घटनाओं को उकेरा गया है। हालांकि, मंदिर की खराब स्थिति के कारण ये चित्र पढ़े नहीं जा सकते। इस मंदिर की बनावट कोणार्क के सूर्य मंदिर की याद दिलाती है। यह मंदिर 300-400 साल पुराना माना जाता है।
आर्य और गैर-आर्य संस्कृति का मिलन
यह मंदिर आर्य और गैर-आर्य संस्कृतियों के मिलन बिंदु के रूप में भी जाना जाता है। यहाँ कभी मानव बलि की प्रथा थी, जिसे तब तक रोका नहीं जाता था जब तक बलि का रक्त ‘दुलुंग’ नदी से न मिल जाए।
पर्यावरण और आस्था
मंदिर के सामने स्थित विशाल बरगद का पेड़ हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। इस जंगल में रहने वाले दुर्लभ प्रजाति के बंदरों को राजा के पूर्वजों का प्रतीक माना जाता है। इसलिए कोई उन्हें नुकसान नहीं पहुँचाता। ये बंदर इस रहस्यमयी और खूबसूरत जगह के पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
पतंग उत्सव और शाक्त परंपरा
राजा मंगोबिंदो के शासनकाल में ‘पतंग उत्सव’ मनाया जाता था। इसे एक पवित्र पर्व माना जाता था। कलाकार राजा के लिए विशाल पतंगें बनाते थे। नवरात्रि के दौरान, यह स्थान जीवंत हो उठता है। आर्य संस्कृति और लोक संस्कृति का अनोखा संगम यहाँ देखा जाता है।
शक्ति उपासना भारतीय संस्कृति की प्राचीन परंपरा रही है। कनक दुर्गा देवी की पूजा आत्म-संयम और आध्यात्मिक उन्नति के लिए की जाती है। यहाँ की पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्म-उत्कर्ष का एक साधन मानी जाती है।
स्वप्नों का महत्व
इस पूरी कहानी में स्वप्नों का विशेष महत्व है। स्वप्नों को यहाँ धार्मिक मान्यता के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो आस्था को और भी मजबूत बनाते हैं। यह विश्वास समाज में धर्म को एक उच्च स्थान प्रदान करता है, जिससे इसकी आलोचना कठिन हो जाती है।
निष्कर्ष
चिल्किगढ़ का कनक दुर्गा मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और प्रकृति का एक अद्भुत संगम है। यह स्थान न केवल आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि पारिस्थितिक संतुलन का भी प्रतीक है। इस मंदिर की परंपराएँ और मान्यताएँ भारतीय संस्कृति की विविधता और समृद्धि को दर्शाती हैं।