Famous ghats in haridwar
Famous ghats in haridwar : भारत का एक राज्य उत्तराखंड मे हरिद्वार एक बहुत ही प्रसिद्ध और लोकप्रिय आध्यात्मिक प्रमुख तीर्थस्थल है | हरिद्वार का इतिहास काफी पुराणा है | इसका इतिहास हमे संस्कृत काव्य और पुराणों में भी लिखा हुआ है | हरिद्वार एक संस्कृत शब्द है, हरी का अर्थ है भगवान विष्णु ; भगवान विष्णु को हरी नाम से जाना जाता है और द्वार का मतलब है द्वारा इसका पुर अर्थ है ” हरी के द्वार ” इस हरिद्वार को भगवान विष्णु के पवित्र घाट के नाम से भी जाना जाता है | आज के इस लेख मे हम देखने वाले है, famous ghats in haridwar के बारे मे |
अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व और इतिहास के कारण हरिद्वार महत्वपूर्ण आध्यात्मिक स्थान है | महाभारत काल से इसका इतिहास जुडा हुआ है | महाभारत के युद्ध के बाद, भगवान श्री कृष्ण ने इस हरिद्वार स्थान पर अपने गुरु द्रोणाचार्य को श्रद्धांजलि अर्पित की थी | मुघल साम्राज्य मे भी हरिद्वार महत्वपूर्ण स्थान रहा है | मुघल इस स्थान को अपना धर्मिक और सांस्कृतिक स्थल मानते थे | मुघल शासकों ने यहा पर विकास कीया था | जैसे जैसे समय बितता गया वैसे वैसे यहा पर अलग अलग क्षेत्र मे विकास होता गया | हरिद्वार मे ने धार्मिक, सांस्कृतिक,और पर्यटन क्षेत्र मे विकास के कारण यह आज महत्वपूर्ण स्थल बन गया है |
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हरिद्वार के प्रसिद्ध घाट
1) famous ghats in haridwar : हर की पौड़ी
हर की पौड़ी इस घाट को हरिद्वार का सबसे प्रसिद्ध और पवित्र घाट माना जाता है | यहा पवित्र गंगा नदी के तट पर गंगा आरती देखने के लिए हर शाम होने वाली महाआरती के
लाखों श्रद्धालु लोग यहा पर आते है | साल के सबसे बडे कुंभ के मेले मे, लोग गंगा नदी में स्नान करने के लिए आते है |
भारत मे उत्तराखंड को देवों की भूमि माना जाता है | चार धाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ यह महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल ईसी देवभमी मे है | इसमे सेही हर की पौड़ी प्रमुख स्थल है |
पुरे भारत के श्रद्धालु भक्त इस देवभूमी मे चारधाम यात्रा करने हजारों की संख्या में आते है | इसका भावार्थ हरि की पौड़ी से है | इसका मतलब श्रीहरि विष्णु के चरण से है |
हर की पौड़ी का इतिहास
समुद्र मंथन के समय अमृतपान को पाने के लीये देव और दानव मे युद्ध हुआ | इस बीच मे विश्वकर्मा जी अमृत चुराकर जा रहे थे | उस समय अमृत की बुंदे पृथ्वी पर गिर गई | जिस भी जगह अमृत की बुंदे गिरी थी, वे सब स्थान धार्मिक स्थल बन गए | अमृत की कुछ बुंदे हरिद्वार मे भी गिर गयी, इसलीये इसे हर की पौड़ी कहा जाता है | हर की पौड़ी में गंगा स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है |
हर की पौड़ी का महत्व
हर की पौड़ी स्थल से साक्षात गंगा धरती पर आती है, इसलीये यह हरिद्वार का मुख्य घाट माना जाता है | इसके बाद गंगा उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल से होकर के बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है | इस स्थान की ऐसी मान्यता है, हर की पौड़ी में एक विशेष पत्थर में भगवान श्रीहरि विष्णु के पदचिन्ह है , इसलीये इसे हर की पौड़ी कहा जाता है | गंगा आरती के समय वातावरण अत्यंत मनमोहक होता है और गंगा के जल मे दीपो की ज्वाला दीखाई देती है |
2) ब्रह्म कुंड
इस घाट का जल शांत और स्वच्छ रहता है | इस ब्रह्म कुंड में स्नान करने के लिए लोग सुबह जल्दी उठकर आते है, साथ मे ही सूर्योदय देखने और उसका आनंद लेने आते है |
हरिद्वार विश्व का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है | गंगा किनारे मे कई प्राचीन घाट है उनमे से ही एक प्रमुख ब्रह्मकुंड घाट है | ग्रंथों में ऐसा लिखा है, इस ब्रह्मकुंड घाट मे डुबकी लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है | साथ मे ब्रह्मकुंड घाट पर स्नान करने से सभी पाप धुल जाते है |
ब्रह्मकुंड घाट पर हर रोज गंगा आरती होती है | यहा आने वाले श्रद्धालु भक्त की आस्था है की गंगा स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है | हरिद्वार में बहुत से घाट है लेकिन ब्रह्मकुंड घाट पर स्नान करने का महत्व कुछ अलग ही होता है |
ब्रह्मकुंड घाट पर विराजमान हुए थे ब्रह्माजी
गंगा स्नान करने से फलों की प्राप्ति होती है | पौराणिक बातो के अनुसार, राजा श्वेत ने अपनी कठोर तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और उनसे यहां विराजमान होने का वर मांग लिया | इसी जगह पर साक्षात सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी प्रकट हुए थे, इसलीये इसका नाम ब्रह्मकुंड घाट बन गया |
दूसरी मान्यता के अनुसार, सगर के साठ हजार पुत्रों का कल्याण करने हेतु भगीरथ द्वारा घोर तपस्या की गई, जिसमें मां गंगा भगवान विष्णु के चरणों से सृष्टि के जनक ब्रह्मा जी के कमंडल, कमंडल से भगवान शिव जी की जटाओं और उनकी जटाओं से धरती लोक पर पहाड़ियों से होते हुए सबसे पहले मैदानी क्षेत्र हरिद्वार में आई थी, इसलिए यहां ब्रह्मकुंड घाट पर गंगा स्नान करने का महत्व है |
ब्रह्मकुंड घाट पर मिली थीं प्राचीन पैड़ियां
राजा विक्रमादित्य द्वारा अपने भाई भरत हरी के लिए यहां पैड़ियों का निर्माण कराया गया था | इसे भरत हरि की पैड़ी भी कहा जाता है | कुछ समय पहले हर की पौड़ी का जीर्णोद्धार करते समय, खुदाई के दौरान प्राचीन पैड़ियां मिलीं, जिन पर ब्रह्म लिपि में लिखा हुआ था, जो इस बात का प्रमाण है कि यह प्राचीन पैड़ियां प्रथम शताब्दी की है | ब्रह्मकुंड घाट पर गंगा स्नान करने और गंगाजल आचमन करने से तन और मन के सभी रोग नष्ट होने की धार्मिक मान्यता है |
यहां गिरी थी अमृत की बूंदें
समुद्र मंथन के समय देव दानवों में अमृत कलश के लिए युद्ध हुआ था | जिसमें से अमृत की बूंदें छलक कर सबसे पहले हरिद्वार में गिरी थी, इसके कारण इस धार्मिक स्थल पर तीज-त्योहारों पर लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान करने आते है | इस घाट पर स्नान करने से सभी पाप नष्ट होने की धार्मिक मान्यता का जिक्र धार्मिक ग्रंथों में भी किया गया है |
3) लक्ष्मण झूला
लक्ष्मण झूला एक लटका हुआ पुल है जो गंगा नदी पर है | यह घाट अपनी मनमोहक दृश्यों के लिए प्रसिद्ध और पहचाना जाता है | इस लक्ष्मण झूला से आप गंगा नदी का शानदार दृश्य देख सकते है और पहाड़ों की मनमोहक सुंदरता का आनंद ले सकते है |
famous ghats in haridwar : उत्तराखंड का ऋषिकेश हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करने वाले जगहों में से एक स्थान | ऋषिकेश उत्तराखंड के टूरिस्ट प्लेस में टॉप की लिस्ट में पहले नंबर पर आता है | ऋषिकेश में आपको एडवेंचर करने के लिए कई सारी एक्टिविटी भी मिल जाएंगी, तो वहीं भगवान के श्रद्धालु के लिए ये सबसे अच्छा स्थान है | ऋषिकेश में कई विख्यात मंदिर है | इन सब में ऋषिकेश में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है, लक्ष्मण और दूसरा है राम झूला |
यह वो दो पुल है जो ऋषिकेश के दो किनारों को साथ मे जोड़ते है | एक का नाम लक्ष्मण झूला और दूसरे को राम झूला कहा जाता है | यात्री इस पूल का उपयोग एक तरफ से दूसरी तरफ जाने के लिए करते है | यह कोई आम पूल नही है | इसकी खासियत और इतिहास अपनी सोच को बदल देता है |
समय आगे बढने और वक्त बितता गया इसके कारण पुल में आई दरारों ओर टूटती रस्सियों की वजह से इसे बंद कर दिया गया है | इसकी जगह पर कांच का नया पुल बनाया जा रहा है | ये पुल भारत का सबसे पहले बनने ग्लास का ब्रिज होगा | इस पुल का नाम बजरंग सेतु रखा जाएगा | इस झूले को मॉडर्न रूप से लैस किया जा रहा है | पुराने लक्ष्मण झूले का इतिहास बहुत पुराना है |
लक्ष्मण झूला निर्माण
लक्ष्मण झूला काफी पुराना है, यह 94 साल पुराना माना जाता है | इसका इतिहास बहुत पुराना है, भले ही ये अब बंद कर दिया गया हो | यह पूल अंग्रेजों के जमाने मे निर्माण हुआ था | 1923 में इस पुल की नींव ब्रिटिश सरकार शासन के दौरान पड़ी थी | तेज बाढ़ की वजह से साल 1924 में पूल की नींव ढह गई थी | फिरसे 1927 मे इस पुल की नींव रखी गई और 1929 में बनकर तैयार हो गया था |
11 अप्रैल 1930 को यह पूल लोगो को आणे जाने के लीये शूरू किया गया | इसकी एक खास बात है, इस पुल का निर्माण जूट की रस्सी से हुआ था और बाद में इसे कंक्रीट और लोहे की तारों से मजबूत बना दिया गया था |
इसे लक्ष्मण झूला क्यों कहते है ?
यह पूल टिहरी गढ़वाल जिले में तपोवन और पौड़ी गढ़वाल जिले के जोंक को आपस में जोड़ता है | इसका नाम सूनकर भगवान राम के भाई लक्ष्मण की याद आती है | लक्ष्मण की याद और इस पुल के इतिहास ठीक बैठता है | लोगो की आस्था और मान्यताओं के अनुसार लक्ष्मण जी ने मात्र दो रस्सियों के सहारे नदी को पार किया था | बाद में इस रस्सी की जगह नदी पार करने के लिए पुल का निर्माण कराया गया और पूल का नाम लक्ष्मण झूला रखा गया |
जूट से लेकर कांच तक के पुल का सफर
किनारों के बीच का सेतु लक्ष्मण झूला यात्री और पर्यटकों के लिए लाभदायक था | गंगा नदी के ऊपर बना हुआ यह पुल लगभग 450 फीट लंबा झूलता हुआ पुल है | पहले यह जूट के रस्सों से बना था बाद में इसे लोहे की तारों से मजबूत किया गया | अब इस पुल की जगह कांच के पुल बन रहा है | लैस से बनने वाला पुल और भी ज्यादा आकर्षक हो जायेगा | इस पूल पर खडे होकर आप पवित्र गंगा नदी का खूबसूरत पानी और नजारा देख सकते है | जो मन को शांती देता है और आंखो को थंडक |
लक्ष्मण झूला कैसे पहुंचे
ट्रेन से जाने वालों के लिए सबसे नजदिकी का रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है, जो आदर्श नगर से 4 किमी के अंतर पर स्थित है | आप फ्लाइट से यहां आना चाहते हैं, तो देहरादून में जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो लक्ष्मण झूला से लगभग 22 किमी अंतर की दूरी पर है |
रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा पहुंचने के बाद आप लक्ष्मण झूला तक जाने के लिए लोकल बस या ऑटो रिक्शा किराए पर ले सकते है | अगर आप बस से जाते है, तो बस आपको नेपाली फार्म फ्लाईओवर पर उतारेगी और वहीं से आप शेयरिंग ऑटो जिसका किराया 50 से 100 रुपये है वो कर सकते हैं, या फिर पूरी ऑटो का किराया 700 से 800 रुपये है, वो करके लक्ष्मण झूला पहुंच सकते है |
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4) राम झूला
यह लटकता हुआ पूल गंगा नदी पर बना हुआ है | यह घाट भी अपनी मनमोहक दृश्यों के लिए प्रसिद्ध और जाना जाता है | राम झूला के पास दुकानो मे धार्मिक वस्तुएं, स्मृति चिन्ह और अन्य सामान उपलब्ध है |
राम झूला उत्तराखण्ड राज्य में ऋषिकेश से 3 किमी पूर्वोत्तर दिशा में गंगा नदी पर बना लोहे का झूला पुल है | यह टिहरी गढ़वाल ज़िले में मुनि की रेती के शिवानंद नगर क्षेत्र को पौड़ी गढ़वाल ज़िले में स्वर्गाश्रम से जुडा हुआ है | यह राम झूला सन् 1986 में बना था और ऋषिकेश के सर्वाधिक पहचाने जाने वाले चिन्हों में से एक है | राम झूले की संरचना व बनावट गंगा पर 2 किमी आगे जाकर बने हुए लक्ष्मण झूले जैसे ही है, लेकिन 230 मीटर लगभग 750 फीट लम्बा राम झूल इन दोनों में से बड़ा पुल है |
5) वीरभद्र घाट
वीरभद्र घाट वीरभद्र को समर्पित है | भगवान वीरभद्र को समर्पित प्राचीन मंदिर है | इस घाट पर वीरभद्र का उत्सव मनाया जाता है | इस उत्सव मे देशभर से श्रद्धालु दर्शन के लीये आते है | इस उत्सव मे लाखों लोग आते है |
ऋषिकेश तीर्थ क्षेत्र अपनी मनमोहक खूबसूरता, प्रसिद्ध मंदिर, घाट और एडवेंचर स्पोर्ट्स इन सबके लीये पुरी दुनिया भर मे प्रसिद्ध है | ऋषिकेश मे देश और अलग अलग देश से लोग मंदिर मे दर्शन करने, यहा की खूबसूरत संदरता को देखने, घुमने और एडवेंचर स्पोर्ट्स का आनंद लेने आते है | यह मंदिर ऋषिकेश के आमबाग आईडीपीएल कॉलोनी के वीरभद्र क्षेत्र में स्थित है | इस मंदिर का इतिहास भगवान शिव जी और भगवान वीरभद्र से जुडा हुआ है | इसी मंदिर में भगवान शिव ने वीरभद्र का क्रोध शांत करवाया था | भगवान वीरभद्र शिवलिंग के रूप मे मंदिर मे विराजमान है | इसलीये इस मंदिर को वीरभद्र मंदिर के नाम से जाना जाता है |
वीरभद्र मंदिर का इतिहास
वीरभद्र मंदिर काफी पुराना है | लगभग 1300 वर्ष पुराना यह मंदिर भगवान वीरभद्र को समर्पित है | जब हरिद्वार में दक्ष प्रजापति ने यज्ञ के लीये सभी देवी देवता को आमंत्रित किया था, सिवा अपने दामाद भगवान शिव के | शिव जी के मना करने पर भी शिवपत्नी सती यज्ञ में चली गई | सतीने अपने पिता राजा दक्ष से पुच्छा की पती भगवान शिव को इस यज्ञ मे आमंत्रण क्यों नहीं दिया |
राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया जिसे सती सुन नहीं पाई और हवन कुंड की अग्नि में खुद की आहुति दे दी | जब भगवान शिव को ज्ञात हुआ तो उन्होने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया | उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर भगवान वीरभद्र प्रगट हुए थे |
भगवान शिव का अवतार वीरभद्र
भगवान शिव के इस अवतार ने दक्ष प्रजापती के यज्ञ को विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया | फिर भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ वो अपने रास्ते में आने वाले सभी का गला काट देते थे | जब वीरभद्र तीर्थ नगरी ऋषिकेश पहुंचे, तो वहां भगवान शिव ने उन्हें गले लगा लिया, जिसके बाद वो शांत हुए और वहीं शिवलिंग के रूप में विराजमान हो गए | तभी से यह वीरभद्र क्षेत्र और इस मंदिर को वीरभद्र मंदिर के नाम से जाना जाता है |
शिवरात्री का मेला
शिवरात्री के समय यहा यात्री और श्रद्धालु लोगो की भीड लगती है, जो किसी त्योहार से कम नही होती | शिवरात्री को मंदिर मे और इस वीरभद्र क्षेत्र मे जागरण और विशेष पूजा होती है | साथ मे ही मेले का आयोजन होता है | यह एक सिद्धपीठ माना जाता है | सच्चे मन और श्रद्धा से मांगी गई मनोकामना यहां पूर्ण होती है |
6) दर्शन घाट
इस दर्शन घाट का वातावरण बहुत ही शांत स्वरूप का होता है | यहा आने पर मन को शांती महसुस होती है | इस घाट पर ध्यान और योग करने के लिए अच्छा स्थान माना जाता है | इस घाट पर
आश्रम है, जो योग और ध्यान करना सिखाते है |
7) त्रिवेणी घाट
त्रिवेणी घाट पर गंगा, यमुना और सरस्वती इन तीन नदियों का संगम है | यह पवित्र स्थान है | त्रिवेणी घाट पर हर साल पितृ पक्ष मेला होता है | इस पितृ पक्ष मे लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पण करते है |
त्रिवेणी घाट का इतिहास
देवों की भूमि उत्तराखंड में ऋषिकेश एक पौराणिक धार्मिक स्थान है | त्रिवेणी घाट पर गंगा स्नान करने का विशेष महत्त्व है | इस त्रिवेणी घाट पर गंगा स्नान करने से सभी पाप खत्म होने की मान्यता और प्रथा भी है | यह त्रिवेणी घाट वह स्थान है जहां पर प्रमुख तीन पवित्र नदियों का अद्भुत संगम है | ऋषिकेश में जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम हुआ है उस जगह को त्रिवेणी घाट के नाम से पहचाना जाता है | इन तीन मोक्षदायिनी का संगम होने से यहां त्रिवेणी घाट पर कर्मकांड करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है |
त्रिवेणी घाट का महत्व
त्रिवेणी घाट का विशेष महत्त्व है | यह हिमालय से गंगा और सरस्वती इन नदियों के आने के बाद यह देश का पहला ऐसा स्थान है, जहां पर पवित्र त्रिवेणी संगम हुआ है | यहां पुरे देश-विदेश से श्रद्धालु स्नान करने और दान, पुण्य, कर्मकांड करने के लीये यहा आते है | यहा की पौराणिक मान्यता है कि यहां स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है | पितरों का पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है | साथ ही श्राद्ध तर्पण करने से उन्हें स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है | इस घाट पर आने पर मन को शांति मिलती है | यह हिंदुओंका महत्वपूर्ण धार्मिक तीर्थ स्थान है |
8) कनखल घाट
यह कनखल घाट अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए पहचना जाता है | कनखल घाट के इस गंगा नदी का पानी बहुत शांत और स्वच्छ होता है | इस कनखल घाट के आस पास कई मंदिर हैं जो भगवान शिव को समर्पित है |
9) मनसा देवी घाट
यह घाट देवी मनसा को समर्पित है | यहां पर एक प्राचीन मंदिर है जो देवी मनसा को समर्पित है | इस मनसा देवी घाट पर हर साल के नवरात्रि पर त्योहार मनाया जाता है, जिसमें लाखों लोग देवी मनसा की पूजा करते है | इस त्योहार पर मनसा देवी की पुजा और रात भर जागरण किया जाता है |
मनसा देवी मंदिर का इतिहास
इस मनसा देवी मंदिर का निर्माण राजा गोला सिंह ने सन 1811 से 1815 के बीच मे किया गया था | यह मंदिर उन चार स्थानों में से एक है, जहां समुद्र मंथन के बाद निकले अमृत की कुछ बूंदें गलती से गिर गयी थी | बाद में इस स्थान पर माता के मंदिर का निर्माण किया गया था | मंदिर में मां की दो मूर्तियां स्थापित है, एक प्रतिमा में उनके तीन मुख और पांच भुजाएं है और दूसरे प्रतिमा में आठ भुजाएं है | मां मनसा देवी कमल और सर्प पर विराजित हुई है |
धार्मिक महत्व
इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण है | इसमें बताया गया है की,मनसा देवी को दसवीं देवी माना गया है और यहा मान्यता है कि एक बार जब महिसासुर नामक राक्षस ने देवताओं को पराजित कर दिया था इसलीये देवताओं ने देवी का स्मरण किया था |
देवी ने प्रकट होकर महिषासुर राक्षस का वध कर दिया और देवताओं ने देवी की पूजा अर्चना की और देवी से कहा कि, आपने हमारी मनसा को पूरा किया इसी प्रकार कलियुग में भी भक्तों की ऐसी ही मनसा को पूरा कर उनकी उपर विपत्ति को दूर करने की प्रार्थना की |
ऐसा कहा जाता है, मनसा देवी ने हरिद्वार के शिवालिक मालाओं के मुख्य शिखर के पास ही विश्राम किया गया था, इसी कारण से यहां मनसा देवी मंदिर स्थापित किया गया | इसी जगह पर मनसा देवी की मूर्ति प्रतिष्ठित हुई और कालांतर में यहां मंदिर बनाया गया और मंदिर में आज भी मां मनसा देवी की मूर्ति विराजमान देखने मिलती है |
मनसा देवी मंदिर कैसे पहुंचे
हरिद्वार शहर के अपर रोड के समीप स्थित इस मनसा देवी मंदिर तक हवाई, रेल और सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है | देहरादून स्थित जौलीग्रांट हवाई अड्डे से टैक्सी या बस के माध्यम से यहां पहुंच सकते है | हवाई अड्डे से मंदिर की दूरी करीब 41 किमी अंतर की है |
रेल मार्ग से आने वाले श्रद्धालु रेलवे स्टेशन से रिक्शा, तांगा, आटो, टैक्सी से मंदिर पहुंच सकते है और इस रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 3 किमी है |
सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए किसी भी शहर से परिवहन बस, निजी बस, टैक्सी या खुद के वाहन से पहुंच सकते है | मां मनसा के दरबार तक सीढ़ियों के अलावा उड़न खटोले से पहुंच सकते है |
10) चंडी देवी घाट
यह घाट देवी चंडी के नाम से विख्यात है और यहा पर एक प्राचीन मंदिर है जो देवी चंडी को समर्पित है | इस मंदिर मे हर साल नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है, जिसमें लाखों लोग देवी चंडी की पूजा करते है |
हरिद्वार का चंडी देवी मंदिर सबसे प्राचीन व सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक माना जाता है | माता का यह मंदिर करीब 1200 साल पुराना है और सभी प्रसिद्ध मंदिरों की तरह ही इस मंदिर की भी अपनी एक पौराणिक मान्यता है |
मंदिर का समय
माता का मंदिर भक्तों को माता का दर्शन करने के लिए सुबह 06:00 बजे से रात के 09:00 बजे तक खुला रहता है दोपहर 12:00 बजे से लेकर 02:00 बजे तक मंदिर बंद किया जाता है |
इस मंदिर मे आने वाले भक्त के मन की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है, इस मान्यता के अनुसार यहा पर देश के हर कोने से श्रद्धालु अपनी मन्नतें लेकर देवी के दरबार में आते है | यह चंडी देवी का मंदिर हरिद्वार में स्थित तीन पीठों में से एक है, और अन्य दो पीठ मनसा देवी मंदिर और माया देवी मंदिर है |
चंडी देवी
चंडी देवी मंदिर का इतिहास कई साल पुराना है | मंदिर में मौजूद देवी की मूर्ति 8 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई थी | शंकराचार्य हिंदू धर्म के सबसे महान पुजारियों में से एक थे | मंदिर को नील पर्वत के तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है, जो हरिद्वार के भीतर स्थित पांच तीर्थों में से एक है |
त्रिशूल के रूप में विराजमान देवी
मां शांत रूप में यहीं विराजमान हो गई थी | ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर बाद में एक मंदिर बनाया गया | पर्वत की श्रृंखला में स्थित दो चोटिया है | इन दो चोटियों को शुंभ और निशुंभ कहा जाता है | हरिद्वार में मनसा देवी मध्य में माया देवी और फिर मां चंडी देवी एक त्रिशूल के रूप में पुरे हरिद्वार की रक्षा करती है, ऐसा माना जाता है | इस त्रिशूल बनने की मान्यता ये है कि तीन देवियां इस पर्वत पर विराजमान है |
चंडी चौदस का है विशेष महत्व:
मां चंडी के दरबार में पूरे साल भर मे ही भक्तों की भीड होती है, लेकिन नवरात्रि से लेकर चंडी चौदस तक यहां पर विशेष पूजा का आयोजन होता है और माना जाता है कि नवरात्रि में जहां मां की मां मंदिर में विराजमान होती है | वहीं, चंडी चौदस के दिन पृथ्वी पर मौजूद तमाम देवी देवता अपनी बहन चंडी से मिलने इसी स्थान पर आते है |
चंडी देवी को काली देवी जैसा माना जाता है और उग्र रूप की पूजा की जाती है | अश्विन और चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रि में चंडी पूजा विशेष समारोह के साथ मनाया जाता है | पूजा के लिए ब्राह्मण की ओर से मंदिर के मध्य स्थान को गोबर और मिट्टी से लीप कर मिट्टी का कलश स्थापन किया जाता है और इस मंदिर के पास मे ही हनुमानजी की माता अंजना का मंदिर है | इस मंदिर में आने वाले भक्त अंजना माता के मंदिर में भी जरूर दर्शन करने जाते है |
चंडी देवी मंदिर में दर्शन का समय
यह मंदिर दर्शन के लीये सुबह पांच बजे के बाद खुलता है और रात में 8 बजे बंद होता है | मंदिर खुलने के बाद यहां सबसे पहले सुबह साढ़े पांच बजे चंडी देवी की आरती होती है | सुबह की आरती के बाद दिन भर पूजा पाठ और दर्शन का कार्य चलता रहता है |
कैसे पहुंचे
यह मां चंडी देवी का मंदिर हरिद्वार से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है | यदि आप बस या ट्रेन से आना चाहते है, तो बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से ऑटो या ई रिक्शा मिल जाती है | जो पैदल मार्ग या रोपवे तक जाने के लिए डेढ़ सौ रुपए किराया लिया जाता है | आप अपनी गाड़ी से बिजनौर की तरफ से आते है, तो श्यामपुर क्षेत्र में ही मां चंडी का मंदिर स्थित है, लेकिन आप ऋषिकेश-देहरादून या फिर दिल्ली की तरफ से आ रहे है, तो हरिद्वार पहुंचकर आप चंडी घाट पुल होते हुए मां के मंदिर आसानी से पहुंच सकते है |
11) विष्णु घाट
हरिद्वार मे स्थित यह विष्णु घाट महत्वपूर्ण स्थान मे से एक है, जहां इस स्थान पर भगवान विष्णु जी ने एक बार स्नान किया था | इस विष्णु घाट में एक बार डुबकी लगाने पर मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते है, और वो पापमुक्त हो जाता है |और इस पानी डुबकी लगाने से मनुष्य को धन की भी प्राप्ति भी हो जाती है | हरिद्वार आने वाले श्रद्धालु लोगों द्वारा भगवान विष्णु में अत्यधिक विश्वास के कारण, भक्तों के साथ-साथ पर्यटक इस भूमि पर घाट में डुबकी लेने के लिए जाते है |
12) रामघाट
ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम जी ने रावण का वधकरने के बाद इसी घाट पर ब्रम्ह हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए तपस्या की थी | इस घाट पर स्नान करने से बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद तो मिलता ही है और साथ ही साथ व्यक्ति को मान सम्मान भी मिलता है |
13 ) कुशावर्त घाट
कुशावर्त घाट का हिंदू धर्म मे बहुत ही महत्व है | इस कुशावर्त घाट पर बारामासी श्राद्ध किए जाते है | इसी घाट पर पांडवों और भगवान राम जी ने अपने पितरों का पिंडदान किया था | इसीलिए यहां पर स्नान करने से पितरों को शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है | हरिद्वार का कुशवार्ता घाट मराठा रानी अहिल्याबाई द्वारा निर्माण किया गया था | एक ऐसी किंवदंति है, जो दत्तात्रेय से संबंधित है जो एक महान संत थे | वह अक्सर इस घाट पर ध्यान करने आते थे | यह भी माना जाता है कि एक हजार साल तक दत्तात्रेय ने इस घाट पर एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी |