Jagannath Temple Puri | पावन धाम जगन्नाथ पुरी

Jagannath Temple Puri : जगन्नाथ पुरी का इतिहास और रहस्य हमेशा से ही श्रद्धालुओं और इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है | यह कहानी भगवान श्रीकृष्ण के अद्भुत चमत्कार, उनकी दिव्यता और उनके भक्तों की अटूट भक्ति की गाथा है | आइए, जानते है इस अद्भुत कथा को, जिसे सुनने के बाद आप भी भगवान जगन्नाथ की महिमा के कायल हो जाएंगे |

Jagannath Temple Story

Jagannath Temple Puri : महाभारत का श्राप और उसकी शुरुआत

Jagannath Temple Puri

Jagannath Temple Story महाभारत के अंत में गांधारी ने अपने पुत्रों की मृत्यु से व्यथित होकर भगवान श्रीकृष्ण को श्राप दिया था | उनका मानना था कि श्रीकृष्ण अपनी दिव्य शक्तियों से युद्ध को रोक सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया | इसलिए उन्होंने श्राप दिया कि 36 साल बाद यदुवंश का नाश होगा और द्वारका समुद्र में समा जाएगी |

समय बीता और 36 साल बाद गांधारी का श्राप सच होने लगा | यदुवंशियों में विवाद शुरू हुआ और वे आपस में ही एक-दूसरे को मारने लगे | द्वारका तबाही की चपेट में आ गई और अंततः समुद्र में डूब गई |

जरा नाम के शिकारी और श्रीकृष्ण का देह त्याग

एक दिन भगवान श्रीकृष्ण नदी के किनारे एक पेड़ के नीचे लेटे हुए थे | उसी समय, जरा नाम का एक शिकारी जंगल में आया | उसने श्रीकृष्ण के पैर की लाल चमकती एड़ी को हिरण समझकर तीर चला दिया | जब जरा को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो वह बेहद दुखी हुआ और क्षमा याचना करने लगा |

श्रीकृष्ण ने उसे सांत्वना दी और कहा, “तुमने कोई पाप नहीं किया है | त्रेता युग में, मैं राजा बाली का वध करते समय पेड़ के पीछे छुपकर तीर चलाया था | आज मैंने उसी कर्म का फल प्राप्त किया है |” ऐसा कहकर, श्रीकृष्ण ने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया |

श्रीकृष्ण का अमर हृदय

जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण के अंतिम संस्कार की तैयारी की, तो उनका पूरा शरीर राख में बदल गया, लेकिन उनका हृदय दिव्य और जीवित बना रहा | अर्जुन ने इस हृदय को एक लकड़ी की चटाई पर रखकर नदी में प्रवाहित कर दिया | यह हृदय बहते-बहते ओडिशा के महानदी तट पर पहुंच गया |

नील माधव

ओडिशा में सबर नाम की एक जनजाति रहती थी, जिसके मुखिया का नाम विष्वबसु था | उन्होंने श्रीकृष्ण के हृदय को प्राप्त किया और इसे नील माधव के रूप में गुप्त गुफा में पूजा करने लगे |

उसी समय, अवंति के राजा इंद्रद्युम्न, जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे, ने नील माधव की कहानी सुनी | उन्होंने अपने ब्राह्मण पुरोहित विद्यापति को नील माधव की खोज में भेजा | विद्यापति ने ओडिशा की यात्रा की और गुप्त सूत्रों से पता लगाया कि सबर जनजाति नील माधव की पूजा करती है |

विद्यापति ने जनजाति के मुखिया विष्वबसु की बेटी ललिता से विवाह कर लिया और उससे नील माधव के दर्शन की विनती की | ललिता के आग्रह पर विष्वबसु ने विद्यापति को गुफा तक ले जाने की अनुमति दी, लेकिन आंखों पर पट्टी बांधने की शर्त रखी | विद्यापति ने चतुराई से सरसों के बीज रास्ते में गिरा दिए ताकि वह रास्ता पहचान सके |

नील माधव का अदृश्य होना

विद्यापति ने राजा इंद्रद्युम्न को नील माधव के बारे में बताया | राजा ने सरसों के पौधों के रास्ते का अनुसरण करते हुए गुफा तक पहुंचने का प्रयास किया। लेकिन जब वे गुफा पहुंचे, तो नील माधव वहां से अदृश्य हो चुके थे |

रात में भगवान विष्णु ने राजा इंद्रद्युम्न को सपने में दर्शन दिए और कहा, “मैं अब इस रूप में दर्शन नहीं दूंगा | तुम समुद्र किनारे जाओ, वहां तुम्हें एक विशाल सुगंधित लाल रंग की लकड़ी मिलेगी, जिसमें शंख, चक्र, गदा और कमल के चिन्ह होंगे | उससे मेरी मूर्ति बनवाओ |”

विशेष लकड़ी और मूर्ति का निर्माण

Jagannath Temple Puri राजा इंद्रद्युम्न को समुद्र किनारे वह लकड़ी मिली | लेकिन वह इतनी भारी थी कि कोई उसे उठा नहीं पाया | अंततः सबर जनजाति के मुखिया विष्वबसु की सहायता से लकड़ी को महल तक लाया गया | लेकिन कोई भी शिल्पकार उस लकड़ी से मूर्ति बनाने में सक्षम नहीं था |

फिर भगवान विष्णु ने राजा को निर्देश दिया कि वे देवताओं के दिव्य शिल्पकार विश्वकर्मा से प्रार्थना करे | विश्वकर्मा वृद्ध शिल्पकार के रूप में प्रकट हुए और मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू किया |

अधूरी मूर्तियों की कहानी

विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि वह 21 दिनों तक एक बंद कमरे में मूर्ति बनाएंगे और इस दौरान कोई दरवाजा नहीं खोलेगा | लेकिन 15 दिनों के बाद, जब कमरे से कोई आवाज नहीं आई, तो रानी गुंडीचा ने दरवाजा खोलने का आग्रह किया | दरवाजा खुलते ही विश्वकर्मा अदृश्य हो गए और मूर्तियां अधूरी रह गईं |

हालांकि, जब राजा ने मूर्तियों के पास जाकर देखा, तो उन्हें भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर श्रीकृष्ण के हृदय की धड़कन सुनाई दी | इसके बाद, राजा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया |

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जगन्नाथ पुरी का महत्व

Jagannath Temple Puri भगवान जगन्नाथ को दुनिया के एकमात्र जीवित देवता माना जाता है | उनकी मूर्ति में श्रीकृष्ण का हृदय विद्यमान है | यह मंदिर श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है, जहां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है |

निष्कर्ष

Jagannath Temple Puri जगन्नाथ पुरी केवल एक मंदिर नहीं है, यह भक्तों के विश्वास, आस्था और भगवान श्रीकृष्ण की दिव्यता का प्रतीक है | श्रीकृष्ण का हृदय, जो भगवान जगन्नाथ की आत्मा के रूप में यहां विद्यमान है, इस स्थान को और भी पवित्र बनाता है |

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है, कि सच्ची भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती | भगवान हमेशा अपने भक्तों के पास किसी न किसी रूप में रहते है |