Jyotiba Temple Kolhapur विष्णु, ब्रह्मा और शिव यह देवता ज्योतिबा के रूप में है | इस मंदिर की मुख्य देवता को ‘ज्योतिबा’ नाम से जाना जाता है | महाराष्ट्र के राज्य कोल्हापुर में स्थित वाडी ज्योतिबा मंदिर हिंदू धर्म का एक पवित्र धार्मिक स्थल और मंदिर है | हिंदू महीने चैत्र और वैशाख की पूर्णिमा की रात को यहा पर मेला लगता है | आज के इस लेख मे हम आपको इस Jyotiba Temple Kolhapur के बारे मे बताने वाले है |
जोतिबा मंदिर कोल्हापूर
Jyotiba Temple Kolhapur जोतिबा मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है | इस मंदिर को केदारनाथ और वादी रत्नागिरी भी कहा जाता है | पौराणिक कथाओं के अनुसार, जोतिबा ने राक्षसों से युद्ध में महालक्ष्मी की मदद की थी | उन्होंने इसी पर्वत पर अपना राज्य स्थापित किया था | यह मूल मंदिर 1730 में नवाजिसया ने बनाया था | आंतरिक भाग प्राचीन है और मूर्ति चार भुजाओं वाली है |
आज के वर्तमान मे स्थित ज्योतिबा मंदिर के स्थान पर पहले एक छोटा मंदिर था | ज्योतिबा मंदिर समुद्र तल से 3124 फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान ज्योतिबा को समर्पित है | यह मंदिर कोल्हापुर से 18 किमी उत्तर-पश्चिम दिशा में और सांगली से लगभग 55 किमी की दूरी पर स्थित है | मूल केदारेश्वर मंदिर का निर्माण कराड के पास किवल गाँव के नावजी साया ने किया था | 1730 में रानोजी शिंदे ने इसके स्थान पर वर्तमान मंदिर का निर्माण किया है | यह मंदिर सरल है और इसे बेहतरीन काले बेसाल्ट पत्थर से बनाया गया है | इस मंदिर का निर्माण दौलतराव शिंदे ने 1808 में करवाया था | रामलिंग का तीसरा मंदिर निर्माण लगभग 1780 में मालजी नीलम पन्हालकर ने करवाया था |
ज्योतिबा मंदिर का इतिहास
Jyotiba Temple Kolhapur श्री ज्योतिबा या केदारेश्वर ब्रह्मा, विष्णु, महेश के अवतार है | यह ऋषि जमदग्नि के क्रोध का एक अंश है, इसमे 12 सूर्य की चमक है | आदिशक्ति ने त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एक समूह बनाया जो मूल त्रिदेव से 100 गुना अधिक शक्तिशाली था | ताकि उनका अहंकार कम हो सके; जब उनका उद्देश्य सफल हो गया, तो उन्होंने अपने नव निर्मित त्रिदेव को आदेश दिया कि जब वह उनकी सहायता के लिए पुकारें तो वे फिर से आएँ |
जब कोल्हासुर और उसकी सेना करवीर क्षेत्र में अन्याय कर रही थी, तब महालक्ष्मी ने करवीर वापस जाने का फैसला किया, इस समय उन्होंने त्रिदेवों को बुलाया और वे ज्वाला के रूप में माता विमलम्बुजा के हाथों में प्रकट हुए थे | माता की इच्छा के अनुसार उस ज्योति ने आठ वर्ष के बालक का रूप धारण कर लिया, जिसमें खड्ग, डमरू, त्रिशूल और अमृत पात्र थे | भगवान ज्योतिबा ने रक्तभोज राक्षस और रत्नासुर राक्षस का विनाश किया था | भगवान ज्योतिबा की मूर्ति चार भुजाओं वाली है |
श्री ज्योतिर्लिंग देवस्थान
Jyotiba Temple Kolhapur ज्योतिबा पर्वत पर महत्वपूर्ण अवसरों पर तोपों की सलामी दी जाती है | हर रविवार और पूर्णिमा के दिन पालखी सोहला मनाया जाता है | इन दिनों शाम 9:00 बजे भगवान को तोपों की सलामी दी जाती है | विजयादशमी दशहरा के दौरान शाम 6 बजे पांच बार तोपों की सलामी दी जाती है |
मंदिर की विशेषता
सासन काठी
सासन काठी मतलब तीस से सत्तर फीट ऊंचा एक सरकंडा होता है | जिसके ऊपर कलगी और पताकाएं लगी होती है | जोतिबा का वाहन ‘घोड़ा’ नीचे की ओर स्थापित होता है | ज्योतिबा पर 106 प्रतिष्ठित सासन सरकंडे निर्धारित है | वे एक दिन पहले पहाड़ पर आते है |
ज्योतिबा मंदिर में गुलाल
इस देवता को गुलाल समर्पित किया जाता है | इसलिए पूरा मंदिर गुलाबी रंग का दिखाई देता है | मंदिर मे ज्योतिबा की कुल तीन मूर्तियाँ हैं और आपको एक मूर्ति पर माला और फूल अर्पित करने होते है | दूसरी मूर्ति के पास पहुँचने पर आपको एक ” होम कुंड ” मिलेगा जहाँ आपको कपूर और अगरबत्ती डालनी होती है |
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मंदिर मे मनाये जाने वाले त्योहार
इस मंदिर मे हिंदू महीने के चैत्र पूर्णिमा पर, एक बड़ा मेला लगता है | लाखों भक्त लंबी सासन छड़ियों के साथ आते है | श्री क्षेत्र पडली, विहे, कोल्हापुर छत्रपति, हिम्मत बहादुर चव्हाण, ग्वालियर शिंदे किवल नवाजीबाबा इस त्यौहार में कुछ सासनकाथी है | भक्तों द्वारा ‘ गुलाल ‘ बिखेरने के कारण पूरा मंदिर परिसर गुलाबी दिखाई देता है और यहाँ तक कि ज्योतिबा पहाड़ी भी गुलाबी हो जाती है | जिसके परिणामस्वरूप लोग मंदिर को गुलाबी मंदिर भी कहते है | रविवार का दिन ज्योतिबा को समर्पित होने के कारण वहाँ हमेशा भीड़ रहती है |
ज्योतिबा मंदिर कैसे पहुंचे ?
सडक मार्ग : ज्योतिबा मंदिर पहुंचने के लीये सबसे नजदिक का शहर कोल्हापुर और 20 किमी और सांगली 55 किमी अंतर पर है | आप इन शहरो के सडक मार्ग से मंदिर टक आसानी से पहुंच सकते है |
रेलवे स्टेशन : सबसे नजदिक का रेलवे स्टेशन छत्रपति शाहू महाराज टर्मिनस है | सांगली का रेलवे स्टेशन 55 किमी है |