Kamakhya Temple Guwahati Assam कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी शहर के पास नीलाचल पहाड़ी पर स्थित एक प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है, जो शक्ति की देवी मानी जाती हैं। मंदिर की विशेषता यह है कि यहां देवी की कोई मूर्ति नहीं है; बल्कि एक प्राकृतिक योनि-आकार की संरचना की पूजा की जाती है, जिसे एक पवित्र जलस्रोत से सिंचित किया जाता है।
History Of Kamakhya Devi Temple
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होने के बाद आत्मदाह कर लिया था। शिव जी ने उनके शरीर को उठाकर तांडव किया, जिससे सृष्टि में असंतुलन उत्पन्न हो गया। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए, जो विभिन्न स्थानों पर गिरे। जहां-जहां ये टुकड़े गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। कामाख्या मंदिर उस स्थान पर बना है, जहां सती की योनि गिरी थी, इसलिए इसे विशेष महत्व प्राप्त है।
मंदिर की अन्य विशेषताएं

मंदिर के मुख्य द्वार पर दो स्वर्णिम सिंहों की मूर्तियां स्थापित हैं, जो आगंतुकों का स्वागत करती हैं। मंदिर परिसर में एक लाल रंग की गणेश जी की मूर्ति भी है, जहां भक्त सिक्के चिपकाते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर के पास एक कुंड भी है, जहां श्रद्धालु स्नान करके शुद्ध होते हैं और फिर देवी के दर्शन करते हैं।
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तांत्रिक साधना का केंद्र
कामाख्या मंदिर तांत्रिक साधना के प्रमुख केंद्रों में से एक है। यहां वामाचार और दक्षिणाचार दोनों पद्धतियों से पूजा की जाती है। मंदिर में पशु बलि की प्रथा भी प्रचलित है, जिसमें मुख्यतः बकरों की बलि दी जाती है। इसके अलावा, नवरात्रि और अन्य विशेष अवसरों पर यहां चंडी पाठ और हवन जैसे अनुष्ठान भी आयोजित होते हैं।
मंदिर की संरचना और वास्तुकला
मंदिर की वास्तुकला नीलाचल शैली की है, जिसमें गुंबदाकार संरचना और जटिल नक्काशी शामिल है। मंदिर परिसर में दस महाविद्याओं – काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला – के मंदिर भी स्थित हैं। इनमें से त्रिपुरसुंदरी, मातंगी और कमला देवी के मंदिर मुख्य मंदिर के भीतर हैं, जबकि अन्य सात देवी के मंदिर परिसर में अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं।
नजदीकी दर्शनीय स्थल
मंदिर के आसपास कई अन्य धार्मिक और पर्यटन स्थल भी हैं। मंदिर के पीछे एक मार्ग नीचे की ओर जाता है, जो भवानी मंदिर और कछुआ तालाब तक पहुंचता है। इस तालाब में बड़े-बड़े कछुए हैं, जिन्हें श्रद्धालु केले खिलाते हैं। इसके अलावा, नीलाचल पहाड़ी के विपरीत दिशा में मां बगलामुखी और मां भुवनेश्वरी के मंदिर भी हैं, जहां से ब्रह्मपुत्र नदी का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में स्थित उमनंदा मंदिर भी एक प्रमुख आकर्षण है। यह द्वीप दुनिया का सबसे छोटा आबाद नदी द्वीप माना जाता है। यहां पहुंचने के लिए नदी किनारे से नावें उपलब्ध हैं, जो श्रद्धालुओं को द्वीप तक ले जाती हैं।
मंदिर मे मनाये जाने वाले त्यौहार
अंबुबाची मेला और अनुष्ठान
हर वर्ष जून महीने में अंबुबाची मेला आयोजित होता है, जो इस मंदिर का प्रमुख उत्सव है। मान्यता है कि इस दौरान देवी कामाख्या रजस्वला होती हैं, और मंदिर के गर्भगृह से तीन दिनों तक जल के स्थान पर लाल रंग का द्रव प्रवाहित होता है। इन तीन दिनों में मंदिर बंद रहता है, और चौथे दिन विशेष पूजा-अर्चना के बाद इसे फिर से खोला जाता है। इस मेले में देशभर से तांत्रिक, साधु-संत और श्रद्धालु बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।
कैसे पहुंचें और ठहरने की व्यवस्था
गुवाहाटी शहर से कामाख्या मंदिर की दूरी लगभग 8 किलोमीटर है। शहर से मंदिर तक पहुंचने के लिए टैक्सी, ऑटो रिक्शा और बस जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। मंदिर परिसर के पास ही एक गेस्ट हाउस है, जो मंदिर प्रशासन द्वारा संचालित है, जहां श्रद्धालु सस्ती और आरामदायक आवास सुविधा प्राप्त कर सकते हैं।
निष्कर्ष
कामाख्या मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसकी अद्वितीय परंपराएं, तांत्रिक साधना और विशेष उत्सव इसे विशेष बनाते हैं। यहां की यात्रा आध्यात्मिक अनुभव के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और इतिहास की गहरी समझ प्रदान करती है।