Nava Narasimha Temples
Nava Narasimha Temples : श्री नरसिंह भगवान श्री विष्णु का चौथा अवतार है | भगवान विष्णु ने यह नरसिंह अवतार केवल एक ही हेतु से लिया था | राक्षस हिरण्यकश्यप का वध करने के लीये भगवान ने यह अवतार लिया था | यह हिरण्यकश्यप नामक राक्षस भगवान विष्णु को नही मानता था | अपने पराक्रम के बारे में वह बहुत उच्च विचार रखता था | अपने आप को वह सर्वश्रेष्ठ मानता था | इसलीये वह वो दूसरों पर अन्याय और अत्याचार करता था | आज के इस लेख मे हम आपको भगवान नरसिंह के नव अवतार के बारे मे सविस्तर रूप से जाणकारी बताने वाले है |
राक्षस हिरण्यकशिपु बहुत ही हठी स्वभाव का था, वह किसी की बात नही मानता था | कारण उसे भगवान शिव से अपनी तपस्या से वरदान प्राप्त था, कि हिरण्यकशिपु को न तो मनुष्य मार सकता था और न ही पशु उसे किसी जगह पर नही मारा जा सकता था, न जमीन पर, न आकाश में, न दिन, न रात और न ही किसी हथियार से उसे मारा जा सकता था |
हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर को सर्वव्यापी मानता था | वह भगवान नरसिंह का भक्त था | भक्त प्रल्हाद की ईश्वर के प्रती इतनी भक्ति देखकर उसने प्रल्हाद को हाथि के पैर के नीचे देने की शिक्षा दि थी | यू समय भी प्रल्हाद के मुंह से ईश्वर का ही नाम आ रहा था | उंचाई के कडे से भी नीचे गिराने का आदेश दिया था | लेकिन ईश्वर ने अपने भक्त की रक्षा की |
भक्त प्रल्हाद की भक्ति से और प्रबल प्रार्थना पर श्री नरसिंह खंभे मे से प्रकट हुए | उन्होने ऐसा रूप लिया था, जैसा मानव और पशु के मिश्रण यानी के सिंह का सिर और मानव का शरीर और उन्होंने शाम के समय केवल अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का पेट फाडकर उसका वध कर दिया | उस समय ना दिन था, न रात थी |
हिरण्यकश्यप की मृत्यु श्री नरसिंह की गोद में हुई और यह श्री नरसिंह का अवतार स्वाति नक्षत्र के दिन हुआ था | इस स्थान को अहोबिलम कहा जाता है | अहोबिलम का अर्थ है, ‘अहो’ का मतलब है ‘आश्चर्य ‘, और ‘बिलम’ का अर्थ है ‘गुफा’ | इसका पुरा अर्थ है, “अद्भुत गुफा ” है | यह अहोबिलम पवित्र स्थान आंध्र प्रदेश के कुडप्पा जिले में स्थित है | यही पर भगवान श्री नरसिंह अवतार ने अवतार लिया था |
अहोबिलम क्षेत्र
अहोबिलम यह एक आदिवासी क्षेत्र है जहाँ पर नल्ला माला यांनी काला पहाड़ और घना जंगल है | यह पूर्वी घाट के मध्य भाग में स्थित और पूर्वी घाट की पूरी श्रृंखला एक साँप ( आदि शेष, श्री महा विष्णु की शय्या ) जैसी हमे दिखाई देती है | सिर वाला भाग श्री तिरुपति है, मध्य वाला भाग श्री अहोबिलम कहलाता है, और पूंछ वाला भाग श्री शैलम है | ये तीनों ही पवित्र स्थान आंध्र प्रदेश मे ही स्थित है | तिरुपति और श्रीशैलम वहा पर अक्सर जाने वाले तीर्थस्थल है |
अहोबिलम महाभारत ही नही, बल्कि कूर्म पुराण, पद्म पुराण और विष्णु पुराण जैसे प्राचीन पुराणों में भी अहोबिलम और इसके देवता नरसिंह का उल्लेख देखने को मिलता है | वास्तव में, ब्रह्मांड पुराण मे ऐसा लिखा हुया है कि यह स्थान कभी हिरण्यकश्यप का महल था, जिसे श्रीमन नारायण ने अपने भक्त प्रह्लाद के लिए नरसिंह के रूप में एक खंभे से प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का वध किया था | उस समय की तत्कालीन मौजूदा संरचनाओं को नष्ट कर दिया था | प्रकृति के द्वारा पर्वत श्रृंखला बनाई जिसमे भगवान नरसिंह के “स्वयं व्यक्त क्षेत्र” के रूप में अवतार के स्थल को संरक्षित किया गया है |
” गरुड़ाद्रि गुहागे गजखुंदासरितते
हिरण्यस्थानवाहनकारहरि सिंहय मंगलम् ”
श्री अहोबिलम पवित्र स्थल नौ नरसिंह मंदिर है | इनकी खोज लगभग 3000 साल पहले हुई थी | यहा पर ऐसा माना जाता है, कि इस श्री अहोबिलम पवित्र स्थल पर दूसरे पंथ के लोगों ने अपना कब्ज़ा कर लिया था और इस क्षेत्र के शासक हिंदू राजाओं ने दुश्मनों से युद्ध करके इस पवित्र स्थल को फिरसे हिंदू उपासकों के लिए वापस अपने पास ले लिया था | अब के समय मे इन मंदिरों की देखभाल श्री अहोबिला मठ द्वारा की जाती है |
श्री अहोबिलम क्षेत्र के दो चरण है | जिसमे ऊपरी अहोबिलम में नव नरसिंह मंदिर है और निचले हिस्से मे भक्त प्रल्हाद वरदार मंदिर है | यहा की मान्यता के अनुसार ऊपरी अहोबिलम में दस नरसिंह है | दो और क्षेत्र से 60 किलोमीटर दूर स्थित है |
नव नरसिंह मंदिर
श्री क्रोडा नरसिंह
श्री क्रोध नरसिंह को वराह नरसिंह के नाम से भी जाना जाता है | भगवान के इस रूप मे, उनका मुख सूअर जैसा है | हिरण्यकश्यप का वध के बाद श्री नरसिंह भगवान ब्रह्मा से बहुत क्रोधित हुए थे | हिरण्यकश्यप को वरदान देने की वजह से वह क्रोधित हुए थे | उनके भगवान ब्रम्ह को बुलाने पर वह बहुत ही डर रहे थे | उस समय उनके हाथ मे वेद थे | तभी वेद उनके हाथों से छूटकर नीचे गिर गए | साकार भूमि ने उन्हें पकड़ लिया और वेदों की रक्षा के लिए उन्हें अपने साथ पाताल ले गई थी |
वेद अभाव कारण सब देवता भगवान नरसिंह के पास गए | उन्होने क्रोध मे एक सींग वाला जानवर का रूप धारण किया | फिर श्री नरसिंह वेदों को वापस लाने के लिए पाताल गए | भूमि-देवी को अपने सींग के ऊपर बैठाकर बाहर निकले | वेदों को बाहर लाने के बाद उन्होने ब्रह्मा के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और उन्हे कहा, आप पहले ही वेदों को खो चुके हैं और इसलिए उन्हें मतलब वेदों को सिर्फ जिम्मेदार व्यक्ति को ही दिया जाना चाहिए | इसलीये
ब्रह्मा ने लक्ष्मी-देवी का सुझाव दिया | इस बात पर भगवान सहमत हुए और उन्होने ब्रह्मा को श्री मालोला नरसिंह के रूप मे दर्शन दिये |
इस मंदिर मे हम श्री क्रोध नरसिंह के साथ-साथ ही श्री लक्ष्मी नरसिंह के भी दर्शन कर सकते है | यहा पर भगवान नरसिंह को लक्ष्मीदेवी को धीरे से शांत करने की कोशिश करते हुए देख सकते है | भगवान नरसिंह को चेंचू लक्ष्मी से लगाव हो गया था | इसलीये ऊनपर लक्ष्मीदेवी नाराज थी, उनको शांत करते हम देख सकते है | इस मंदिर तक पहुंचने के लीये हमे थोड़ी चढ़ाई करनी पड़ती है फिर हम मंदिर के पास पहुंच जाते है |
श्री मालोला नरसिम्हा
” वारिजावरिथा भयाय वानीपति मुखैश्वरै महिथया महोधारा मलोल्यस्तु मंगलम “
श्री मालोला नरसिंह मंदिर तक पहुंचने के लिए क्रोध नरसिंह मंदिर से सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है | सीढ़ियां चढकर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है | इस मंदिर मे हमे भगवान नरसिंह विग्रह शांतिपूर्ण रूप मे हमे देखने को मिलते है | इसका कारण, उनके साथ लक्ष्मीदेवी भी मौजूद है |
मालोला का पुरा अर्थ है; मा का अर्थ मां लक्ष्मी और लोला का अर्थ है प्रिय | इसलीये उन्हे मालोला नरसिंह रूप से माना जाता है | इस स्थान को मारकोंडा लक्ष्मी क्षेत्र कहा जाता है | श्री मालोला नरसिंह की उत्सव मूर्ति अहोबिला मठ के जीयर के साथ यात्रा की जाती है | आप यही सोच रहे होंगे कि; नौ देवताओं में से यह देवता जीयर के साथ ही क्यों यात्रा करते है इसका मुख्य कारण है : मेलकोट
एक श्रीनिवासाचार्य नाम का एक युवा भक्त था | एक दिन भगवान लक्ष्मी नरसिंह उसके सपने में प्रकट हुए और उन्होने उसे अहोबिलम क्षेत्र आने, संन्यास लेने और अहोबिलम से अपने भविष्य के मिशन को आगे बढ़ाने का आदेश दिया था | युवा भक्त श्रीनिवासाचार्य अपने इस सपने पर विश्वास नहीं कर सके और अपने गुरु, श्री घटिकासतम अम्मल के पास पहुंचे, जिन्हें वरद विष्णुवराचार्य के नाम से भी जाना जाता था और उनसे श्रीनिवासाचार्य ने निर्देश मांगे | उन्होंने तुरंत श्रीनिवासाचार्य को बिना किसी देरी के भगवान के आदेश का पालन करने के लिए कहा |
अपने गुरु से आशीर्वाद लेकर, श्रीनिवासाचार्य अहोबिलम पहुंचे ; वहाँ पर उनका स्वागत स्थानीय सरदार मुकुंदराय ने किया | स्थानीय सरदार मुकुंदराय को भी भगवान की ओर से अहोबिलम में श्रीनिवासाचार्य का स्वागत करने का आदेश दिया गया था | भगवान नरसिंह एक संत के रूप में श्रीनिवासाचार्य के सामने प्रकट हुए और उन्हें संन्यास आश्रम में दीक्षित किया और अहोबिलम मठ भी बनाया गया | फिर भगवान ने उन्हें नाम दिया सथकोप जीयर | उन्होंने उन्हें वैष्णववाद का संदेश प्रचार करने के लिए घर-घर जाने और अपने साथ भगवान की उत्सव मूर्ति ले जाने का निर्देश दिया साथ ही भगवान यह भी चाहते थे कि वे शिष्यों के आध्यात्मिक गुरु बनें |
भगवान ने उन्हें उत्सव मूर्ति लेने का निर्देश तो दिया था, लेकिन यह नहीं बताया कि कौन सी उत्सव मूर्ति लेनी है | उन्होंने भगवान का ध्यान करना शुरू किया और उनसे उत्सव मूर्ति चुनने का अनुरोध किया | तुरंत ही श्री मालोला नरसिंह की उत्सव मूर्ति मंदिर से उड़कर उनके हाथों में आ गई | श्री मालोला नरसिंह की उत्सव मूर्ति को पादुका से सजाया गया है, जो हमे दर्शाता है कि भगवान यात्रा पर जाने के लिए तैयार है | तब से श्री मालोला नरसिंह की उत्सव मूर्ति अहोबिलम मठ के जीयरों के साथ यात्रा कर रही है और भक्तों को दया और भक्ति सेवा का आशीर्वाद दे रही है |
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श्री ज्वाला नरसिम्हा
” हिरण्यष्टंभ सम्भूतिप्रख्यात परमात्मनेय प्रह्लाधर्तिमुशे ज्वाला नृसिंहाय मंगलम् “
मलोला नरसिंह मंदिर से श्री ज्वाला नरसिंह मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ चढकर आना पडता है | लेकिन मैं भक्तों को सलाह दुंगी ही वे चढ़ाई न करे | वह क्रोध नरसिंह मंदिर लौटें और श्री ज्वाला नरसिंह मंदिर आने के लीये भवानाशिनी नदी के किनारे से चलकर पहुंचे | यह मंदिर अचलाचया मेरु नामक पहाड़ी पर स्थित है और मंदिर और उग्र स्तम्भ के आधार पर स्थित है | यहा तक पहुंचने के लीये हमे भवानाशिनी नदी के झरने के नीचे जाना होता है |
आपको यह भी बता दे की, यह वही स्थान है जहाँ भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध किया था | यहीं पर भगवान नरसिंह का क्रोध चरम सीमा पर था और यहाँ भगवान नरसिंह का विग्रह हिरण्यकश्यप को अपने नाखूनों से चीरते हुए दिखाई देता है | भगवान के अन्य और दो रूप हैं स्थाणु नरसिंह ( स्तंभ से निकलते हुए ) यहाँ भगवान नरसिंह ने अपने खून से सने हाथ धोए थे और इसलिए इस कुंड के पानी का रंग लाल हो गया था | आज भी इस तीर्थ के आस-पास लाल धब्बे देखने को मिल जाते है | इस तीर्थ का पानी एकदम साफ़ और बहुत मीठा होता है |
श्री योगानंद नरसिम्हा
” चतुरानां चेतोब्जा चित्रभानु स्वरूपिणे वेदाद्रि गहवरस्थाय योगानंदाय मंगलम् “
राक्षस हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भगवान नरसिंह ने यहीं पर भक्त प्रल्हाद को योग आसन सिखाए थे | यहा पर भगवान का यह रूप पद्मासन में बैठा देखने को मिलता है और उनके पैरों में योगपट्टा बंधा हुआ है | एक बार भगवान ब्रह्मा इस स्थान पर आए थे, जब वे बहुत परेशान थे और भगवान नरसिंह की भक्ति करके शांति प्राप्त करने के बाद प्रसन्न होकर वापस लौटे गये थे | भगवान के विग्रह की पूजा एक गहरी सुरंग में की जाती थी और उनकी पूजा आसानी से करने के लिए उन्हें सुरंग से बाहर निकाला गया और यहां पर स्थापित किया गया है |
श्री छत्रवथ नरसिंह
” हाहाहा हूहू वाक्य गंधर्व नृत्तगीत हृतात्मनेय भावहंत्रित चत्रवतैम्हय मंगलम् “
भगवान का यह अवतार बहुत ही अनोखा है क्योंकि उनके चेहरे पर एक बहुत ही सुंदर चौड़ी मुस्कान है | यहा पर भगवान की पूजा एक पीपल के पेड़ के नीचे की जाती है, जो काँटों से घिरा होता है | इसलिए वे छत्रवथ नरसिंह के नाम से प्रसिद्ध है | भगवान का बायाँ हाथ ताल मुद्रा में है और यह ताल मुद्रा भगवान के किसी अन्य रूप में किसी अन्य स्थान पर नहीं देखी जाती |
एक बार हाहा और हूहू नाम के दो गंधर्व मेरु पर्वत से यहाँ पर आए थे और अपने संगीत की मधुरता से उन्होने भगवान का मनोरंजन किया | भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे महान गायक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करेंगे | भगवान इंद्र और अन्य देवताओं ने यहाँ पर भगवान की पूजा की और उनसे राक्षस-राज को मारने का अनुरोध किया था | इस मंदिर को देवता आराधना क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है |
श्री पवन नरसिंह
” भारद्वाज महायोगी महापाठक हारिणी थापनीय रहस्यार्थ पावनयस्तु मंगलम “
यह श्री पवन नरसिंह मंदिर पवन नदी के तट पर है | इसलिए भगवान को पवन नरसिंह के नाम से जाना जाता है | यह नौ नरसिंह मंदिरों में से भगवान का सबसे शांत रूप देखने को मिलता है | उन्हें पामुलेटी नरसिंह स्वामी के नाम से भी जाना जाता है | ऐसा माना जाता है की, यहाँ भगवान भक्तों को पिछले जन्मों और वर्तमान जन्मों के सभी पापों से मुक्ति दिलाते है | जो जानबूझकर या अनजाने में किए गए हो | महान ऋषि भारद्वाज ने इस स्थान पर ब्रह्म हत्या के महान पाप से खुद को मुक्त किया था |
यह मंदिर जंगल के बीच में काफी दूर स्थित हुआ है | इस मंदिर तक पहुँचने के लिए भक्त को कई खड़ी सीढ़ियाँ चढकर उपर आना पडता है | यह सीढ़ियाँ श्री अहोबिलम नरसिंह के मंदिर के पीछे से शुरू होती है | भक्त स्थानीय जीप के माध्यम से भी इस मंदिर में पहुंच सकते है | हालाँकि मैं आपको सीढ़ियाँ चढ़ने और पैदल चलने की सलाह दूँगी, क्योंकि जिस मार्ग से जीप जाती है, वहाँ कोई सड़क सुविधा नही है | शाम 5 बजे के बाद इस मंदिर में न जाएँ क्योंकि तब बहुत अंधेरा हो जाता है और जंगल में जंगली जानवर रहते है |
श्री भार्गव नरसिम्हा
” भरगावाख्य तपस्वीसा भावना भावितथमनेय अक्षय तीर्थस्तु भगवयस्तु मंगलम “
भगवान परशुराम को भार्गव के नाम से भी जाना जाता है | यहा पर उन्होने भगवान नरसिंह को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी | वे उस समय भगवान के दर्शन करना चाहते थे जब उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध किया था | परशुराम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान नरसिंह ने उन्हें मनोवांछित दर्शन दिए थे | जब भगवान उन्हे दर्शन दे रहे थे, तब भगवान की गोद में लेटे हिरण्यकश्यप ने परशुराम की ओर देखा | तब परशुराम ने नरसिंह से उस रूप में प्रकट होने का अनुरोध किया था |
तब से भगवान की यहाँ पूजा की जाती है और उन्हें श्री भार्गव नरसिंह स्वामी के रूप में जाना जाता है | यह रूप अहोबिलम में भगवान नरसिंह के सबसे क्रूर रूपों में से एक है | अक्षय तीर्थ के तट पर स्थित है यह मंदिर पवित्र पुष्कर तीर्थ के समान माना जाता है | भगवान परशुराम ने इस कुंड पर ऋषि वशिष्ठ और अन्य ऋषियों ने यहाँ पर तपस्या की थी | हमे भगवान के चरण कमलों में भक्त प्रल्हाद के दर्शन मिलते है |
श्री करंज नरसिम्हा
” करंजमूले माथरस्ते यत्र
सारंगश्चक्र ध्रुतं गोभू हिरण्य
निर्विन्ना गोबिला ज्ञानधायिने प्रबंजन
सुनासीरा करणचायस्थु मंगलम् “
इस स्थान पर भगवान नरसिंह का विग्रह करंज वृक्ष के नीचे है देखने को मिलता है | इसलिए उन्हें करंज नरसिंह के नाम से जाना जाता है | करंज वृक्ष को स्थानीय भाषा में होंगे मारा कहा जाता है | उन्हें एक और सारंग नरसिंह के नाम से भी जाना जाता है | इसका कारण वे सारंग नामक धनुष धारण करते है |
एक बार हनुमान अहोबिलम में तपस्या कर रहे थे और लगातार भगवान राम के पवित्र नाम का जाप कर रहे थे | तुरंत भगवान नरसिंह उनके सामने प्रकट हुए और पूछा ” हाँ तुमने मुझे बुलाया ? ” हनुमान आश्चर्यचकित हुए और नरसिंह से कहा ” तुम मुझे परेशान कर रहे हो, कृपया चले जाओ ” नरसिंह ने उत्तर दिया, “मैं राम हूँ, क्योंकि तुमने मुझे बुलाया है, और मैं आया हूँ |”
हनुमान फिर से आश्चर्यचकित हुए और उन्होने पूछा, “आप राम कैसे हो सकते है ? आपका राम जैसा कोई रूप नही है | ” तुरंत भगवान नरसिंह एक हाथ में धनुष और दूसरे हाथ में सुदर्शन लेकर राम की तरह प्रकट हुए फिर हनुमान आश्वस्त हो गए और तब से श्री करंज नरसिंह के रूप की पूजा करने लगे | मंदिर में हनुमान की एक छोटी वेदी भी है |
ऋषि गोबिला को दुर्वासा मुनि ने श्राप दिया था और वे मूर्ख बन गए थे | फिर उन्होंने नरसिंह मंत्र का जाप करके भगवान की श्रद्धा से पूजा की | उन्हे भगवान प्रसन्न हुए और ऋषि को आशीर्वाद दिया कि पहले की तरह वे बहुत विद्वान बनेंगे और समय के साथ उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी | तब से ज्ञान की चाह रखने वाले भक्त यहाँ आकर भगवान की पूजा करते है |
प्रल्हाद वरद नरसिंह
ऊपर बताए गए मंदिरों के अलावा, निचले अहोबिलम में भगवान नरसिंह स्वामी को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे प्रल्हाद वरद सन्निधि के नाम से जाना जाता है | इस स्थान की अन्य वस्तुएँ ‘ उग्र स्तम्भम ‘ और ‘ प्रह्लाद मेट्टू ‘ नामक है |
यह मंदिर नीचे के अहोबिलम में स्थित है | मंदिर बहुत बड़ा और सुंदर है | मूल मंडप में 16 वीं शताब्दी के कई नक्काशीदार स्तंभ है | इस मंदिर की मुख्य देवता श्री नरसिंह है, जिन्हें प्रल्हाद वरद कहा जाता है | उनके चार हाथ हैं | उन्होंने श्री महालक्ष्मी को अपनी गोद में रखा है | श्री श्रीनिवास के लिए एक अलग गर्भगृह भी है |
आज के इस लेख मे हमने आपको भगवान नरसिंह के नौ अवतार के बारे मे जुडी हुई सारी जाणकरी दि है | आशा है की आपको यह लेख पसंद आए |
FAQ
भगवान नरसिंह के 9 मंदिर कौन से है ?
भगवान नरसिंह के 9 मंदिर : अहोबिलम यदागिरिगुट्टा, मालाकोंडा, सिंहचलम, धर्मपुरी, वेदाद्रि, अंतरवेदी, मंगलगिरी और पेंचलकोना | यह सभी मंदिर स्थान आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में है | सभी स्थानों पर नरसिंहस्वामी की अलग अलग रूपों में पूजा की जाती है | लेकिन अहोबिलम में श्री नरसिंहस्वामी के सभी नौ रूपों के दर्शन होते है |
नव नरसिम्हा क्षेत्र क्या है ?
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य में नव नरसिंह क्षेत्र है | यह सभी 9 मंदिर दक्षिण भारतीय राज्यों मे आंध्र प्रदेश ( अहोबिलम, सिम्हाचलम, पेन्चलाकोना, वेदाद्रि, अंतरवेदी, मंगलागिरी और मालाकोंडा या मलयाद्री ) और तेलंगाना ( यादागिरी गुट्टा या यादाद्रि और धर्मपुरी ) में स्थित है देखने को मिलते है |
सबसे प्रसिद्ध नरसिंह स्वामी मंदिर कौन सा है ?
नरसिंह स्वामी का सबसे प्रसिद्ध मंदिर वराह लक्ष्मी नरसिंह मंदिर है | जो सिंहचलम मे स्थित है |
अहोबिलम मंदिर के 9 मंदिर कौन से है ?
यह 9 भगवान नरसिंह के प्रसिद्ध नौ मंदिर है : ज्वाला, अहोबिला, मालोला, क्रोडा, करंजा, भार्गव, योगानंद, छत्रवत और पवन | यह अहोबिलम मंदिर के 9 मंदिर है |