Sinhagad fort trek | जानिए सिंहगढ़ किले का पूरा इतिहास और तानाजी मलुसरे की वीर गाथा

Sinhagad fort trek ‘जैसे हर कण में पर्वत है, हर बीज में जंगल, हर तलवार में एक सेना, वैसे ही हर मराठा में लाखों मराठे हैं’। आज हम आपको ‘स्वराज्य’ के सिंहगढ़ किले के बारे में और मराठा साम्राज्य के वीर योद्धा तानाजी मलुसरे के बलिदान की कहानी बताएंगे। तानाजी मलुसरे का नाम सुनते ही हमारी आँखों में आंसू और शरीर में सिरहन दौड़ जाती है। वह वीर योद्धा जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन किले को जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

sinhagad fort trek पुणे-दरवाजा.

Sinhgad Fort Trek

किला लगभग 2000 साल पुराना माना जाता है। यह किला कभी आदिल शाह, मराठा साम्राज्य, पेशवा और अंग्रेजों के अधीन था। सिंहगढ़ किला पहले कोंधना किला के नाम से जाना जाता था, जिसे बाद में छत्रपति शिवाजी महाराज ने बदलकर सिंहगढ़ किला रखा। यह किला पुणे जिले के दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। किला समुद्र तल से लगभग 4400 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यह सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में बसा हुआ है। यहां से पुरंदर, राजगढ़, तोरणा, लोढ़गढ़, विषापुर और टंग किलों का दृश्य देखा जा सकता है।

सिंहगढ़ किला पहले आदिलशाही के अधीन था। जब यह किला मराठा साम्राज्य के पास आया, तो ‘दादाजी कोंडेव’ को किले का सूबेदार नियुक्त किया गया था। 1647 में उन्होंने किले को सेना का मुख्यालय बना दिया। 1649 में यह किला आदिल शाह को पुनः सौंप दिया गया था, ताकि शाहजी महाराज को छोड़ने के बदले किले को वापस लिया जा सके।

Sinhgad fort trek सिंहगढ-किले-की-तयस्विरे

किले की जानकारी

Sinhagad fort trek किला लगभग 2000 साल पुराना माना जाता है। किले की यात्रा करते हुए सबसे पहले जो स्थान आता है, वह है ‘तोपखाना’। यहां पर तोपें और युद्ध सामग्री रखी जाती थी। उसके बाद आता है ‘अस्तवल’, जहां घोड़े रखे जाते थे। लोकमान्य तिलक जी भी यहां आते थे। उन्होंने यहां एक बंगलो का निर्माण किया था, जिसे ‘तिलक बंगला’ कहा जाता है। यहां वह महात्मा गांधी जी से भी मुलाकात किया करते थे। किले में ‘देवटाक’ नामक जलाशय भी है, जहां पानी जमा किया जाता था। महात्मा गांधी जी जब यहां आते थे, तो विशेष रूप से इस जलाशय से पानी पिया करते थे।

राजाराम महाराज समाधी

राजाराम महाराज, छत्रपति शिवाजी महाराज के दूसरे पुत्र थे। उनका निधन 1700 में 30 वर्ष की आयु में हुआ था। उनकी याद में उनकी पत्नी ने यहां समाधि बनाई थी। आप यहां इस समाधि को देख सकते हैं। जब यह किला पेशवाओं के शासन में था, तब भी उनकी पत्नी इस समाधि के दर्शन के लिए यहां आती थीं।

तानाजी कडा

तानाजी कड़ा वह स्थान है, जहां वीर तानाजी मलुसरे और उनके साथी मावले ने एक ‘घोर्पड़’ (बंगाल मॉनिटर लिजार्ड) को रस्सी से बांधकर रात को अस्थमी के दिन किले की दीवारों पर चढ़ाई की थी। यह घोर्पड़ बहुत ताकतवर था। कहा जाता है कि एक बैल की ताकत दो बैल के बराबर होती है। इसकी पकड़ दीवारों पर बहुत मजबूत होती है। इसी की मदद से तानाजी और उनके साथी किले पर चढ़े थे।

खुला रंग मंच

सिंहगढ़ किले में एक स्थान है, जिसे ‘खुला रंग मंच’ कहा जाता है। यह एक बहुत बड़ा स्थान है, जिसे उयद्भान के मनोरंजन के लिए बनाया गया था।

कोंढानेश्वर मंदिर

सिंहगढ़ किले में भगवान शिव का एक मंदिर है। छत्रपति शिवाजी महाराज इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते थे।

कालिका मंदिर

यहां कालिका देवी का भी एक मंदिर है। माँ कालिका देवी को भवानी देवी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि भवानी देवी शिवाजी महाराज से प्रसन्न होकर उन्हें एक तलवार उपहार में दी थी। आज भी यह देवी पूजा जाती हैं।

तानाजी मालुसरे समाधी

तानाजी मलुसरे का समाधि स्थल भी यहीं पर स्थित है। आप यहां तानाजी के बारे में और आदिलशाह के सूबेदार उयद्भान राठौड़ के साथ हुई युद्ध की जानकारी भी दी गई है। सिंहगढ़ किला इस स्थान के कारण प्रसिद्ध है। फरवरी 1670 में वीर तानाजी मलुसरे ने अपने 500 मावलों के साथ आदिलशाह के किले अधीक्षक उयद्भान राठौड़ और उनके 1200 सैनिकों से सिंहगढ़ किले पर घमासान लड़ाई लड़ी थी।

किले के इस युद्ध के कुछ पल यहां की मूर्तियों में चित्रित किए गए हैं। इस युद्ध में तानाजी की ढाल टूट गई और उयद्भान ने उनका हाथ काट दिया। फिर तानाजी ने अपनी पगड़ी को ढाल की तरह बांधकर लड़ा और युद्ध जीत लिया। लेकिन युद्ध में वह शहीद हो गए।

तानाजी मलुसरे के साथ उनके छोटे भाई सूर्याजी मलुसरे और शेलर मामा ने भी किले को जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस किले पर आधारित एक हिंदी फिल्म ‘तानाजी’ भी बन चुकी है।

Sinhgad fort trek तानाजी-मालुसरे-समाधी.

किले के अन्य महत्वपूर्ण स्थल

किले में ‘कल्याण दरवाजा’ है, जहां उयद्भान की मृत्यु हुई थी। इस स्थान को ‘उयद्भान कड़ा’ भी कहा जाता है। जब तानाजी मलुसरे शहीद हो गए, तो सूर्याजी ने अपने सैनिकों को युद्ध जारी रखने के लिए प्रेरित किया और किले को जीतने के बाद एक मशाल जलाकर राजगढ़ में छत्रपति शिवाजी महाराज को विजय का संदेश भेजा। इस युद्ध में तानाजी ने सिर्फ सिंहगढ़ किला ही नहीं, बल्कि लोगों के दिल भी जीत लिए।

तानाजी मलुसरे का बलिदान और उसकी महिमा

तानाजी का बेटा रायबा का विवाह उसी दिन था, जिस दिन युद्ध हुआ था, लेकिन उन्होंने शादी को छोड़कर सिंहगढ़ किला जीतने का फैसला लिया। उन्होंने सब से कहा, “आधी लगीन कोंधाण्याच, मग माझ्या रायबाच”, यानी पहले कोंधना किला जीतूंगा, फिर अपनी शादी करूंगा। लेकिन वह युद्ध में शहीद हो गए। दोनों खबरें सुनकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने कहा, “गड आला पण सिंह गाया”, यानी किला तो मिला, लेकिन शेर चला गया। तानाजी के इस वीरता को बनाए रखने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने किले का नाम कोंधना से बदलकर सिंहगढ़ रखा और इस किले में उनका समाधि स्थल बनवाया।

Historical places in jaipur

सिंहगढ़ किले की यात्रा

अगर आप पहली बार सिंहगढ़ किले की यात्रा करने जा रहे हैं, तो आपको यह चीजें साथ ले जानी चाहिए:

  • रेनकोट
  • छाता
  • ट्रैकिंग शूज
  • हल्का खाना और पानी
  • मोबाइल
  • नकद पैसे
  • कैमरा, ड्रोन
  • प्राथमिक चिकित्सा किट

मानसून का मौसम इस किले की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय है। यहां मोबाइल का नेटवर्क नहीं मिलता, इसलिए नकद पैसे रखना जरूरी है। बारिश में अपने मोबाइल और ड्रोन को भी सुरक्षित रखने का ध्यान रखें।

सिंहगढ़ किला एक ऐतिहासिक किला है। यह बहुत खूबसूरत है और हमें स्वर्गीय अहसास कराता है। जब भी आप यहां जाएं, तो 10-15 मिनट के लिए चुपचाप बैठकर आंखें बंद करके शांति का अनुभव करें। यह आपको एक अद्भुत अनुभव देगा।

निष्कर्ष

सिंहगढ़ किला केवल एक किला नहीं, बल्कि तानाजी मलुसरे की वीरता और मराठा साम्राज्य की शौर्य गाथा का प्रतीक है। यह किला हमें न केवल इतिहास की जानकारी देता है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि कभी हार नहीं माननी चाहिए। वीरता और बलिदान की यह गाथा हमें हमेशा प्रेरित करती रहेगी।