Sinhagad fort trek |जानिए सिंहगढ किले का पुरा इतिहास

Sinhagad fort trek |जानिए सिंहगढ किले का पुरा इतिहास

Sinhagad fort trek |जानिए सिंहगढ किले का पुरा इतिहास और तानाजी मालुसरे का पराक्रमी इतिहास |’जैसे हर मिट्टी के एक कण मे पहाड होता है,हर एक बीज मे जंगल होता है,हर एक तलवार मे सेना,वैसे हर एक मराठा मे होता है लाख मराठा’|नमस्ते,आज हम आप लोगोंको बताने वाले है,स्वराज्य के सिंहगढ का इतिहास |तानाजी मालुसरे यह नाम मराठा साम्राज्य के वीर योद्धा का नाम त्याग और बलिदान के लिए जाना जाता है |इस शूरवीर का नाम सूनते ही आखों मे आसू और शरीर पर रोंगटे खडे हो जाते है |

sinhagad fort trek पुणे-दरवाजा.
कंटेंट ऑफ टेबल

सिंहगढ किले की प्रस्तावना
किले के बारे मे जाणकारी

राजाराम महाराज समाधी
तानाजी कडा
खुला रंग मंच
कोंढानेश्वर मंदिर
कालिका मंदिर
तानाजी मालुसरे समाधी
तानाजी मालुसरे का इतिहास

सिंहगढ किले की प्रस्तावना

सिंहगढ किला करीब 2000 साल पुराना माना जाता है |ये किला कभी आदिलशाह ,मराठा साम्राज्य ,पेशवा और ब्रिटिश के पास भी रहा है |सिंहगढ का पहला नाम कोंढाणा किला था |बाद मे छत्रपती शिवाजी महाराज ने इसका नाम बदल दिया था |सिंहगढ यह किला पुणे जिले के नैऋत्य दिशा मे 30 किलोमीटर की दूरी पर है |यह किला समुंदर की चौपाटी से लगभग 4400 फीट की उंचाई पर है |सह्याद्री की रेंज मे ये किला है |दो सीढी जैसा खंदक और दूरदर्शन का मनोरा यह हमे दूर से ही आकर्षित करता है |पुरंदर ,राजगढ ,तोरणा ,लोहगढ ,विसापूर ,तुंग इन किलो के नजारे भी यहा से दिखते है |

सिंहगढ किला पहले आदिलशाही मे था |जब यह किला मराठा साम्राज्य के पास आया तो ‘दादाजी कोंडदेव’ इनको किले का सुभेदार बनाया था |1647 मे ईन्होने किले मे लष्कर का केंद्र बनाया|1649 मे शहाजी महाराज को छुडाने के लिए पुरंदर के तह मे ये किला आदिलशाह को दे दिया गया था |

Sinhgad fort trek सिंहगढ-किले-की-तयस्विरे

किले के बारे मे जाणकारी

सिंहगढ किला 2000 साल पुराना है ऐसा माना जाता है |सिंहगढ किले का ट्रेक करते समय पहले आता है , ‘तोपखाना’|यहा पर तोप और युद्ध का सामान रखा जाता था |उसके बाद आता है ‘अस्तवल’ ,जहा पर घोडो को रखा जाता था |यहा पर पहले लोकमान्य तिलक जी भी आते थे |उन्होने यहा पर ‘तिलक बंगला’ नाम का बंगला भी बनवाया था |साथ मे ऊनकी यहा पर महात्मा गांधीजी के साथ मुलाकाते होती थी|पास मे ही किले मे पानी को जमा करने के लिए ‘देवटाक’ है |जब महात्मा गांधीजी यहा पर आते थे, तब वो खास देवटाक का पानी मंगवाकर पिते थे |

राजाराम महाराज समाधी

छत्रपती शिवाजी महाराज के दुसरे बेटे राजाराम महाराज इनकी 1700 मे 30 वर्ष की उमर मे हेल्थ की बिमारी से मृत्यू हो गयी थी |ऊनकी याद मे ऊनकी पत्नी ने ऊनकी यहा पर समाधी बनाई थी |आप इस समाधी को यहा पर देख सकते है |जब ये किला पेशवेकाल मे था तब भी ऊनकी पत्नी यहा पर समाधी के दर्शन के लिए आती थी |

तानाजी कडा

तानाजी कडा यह वही जगह है ,जहा पर शूरवीर तानाजी मालुसरे और ऊनके साथीदार मावले अष्टमी के रात मे एक ‘घोरपड ‘को मतलब ‘बेंगाल मॉनिटर लिझार्ड’ है |उसको रस्सी से बांधकर उपर कडे पर चढे थे |इस घोरपड मे बोहोत ताकद होती है |बार बैलो की शक्ति एक मे होती है ,ऐसा बोल जाता है |दीवार पे ऊनकी पकड बहुत मजबूत होती है|इसकी मदद से वो लोग उपर चढ गये थे |

खुला रंग मंच

सिंहगढ किले पर एक जगह है ,उसका नाम है खुला रंग मंच |यह बहुत बडी जगह है |उदयभान का मनोरंजन करने के लिए इसे बनाया गया था |

कोंढानेश्वर मंदिर

सिंहगढ किले पर शिवजी का मंदिर है |इस मंदिर मे भगवान शिवजी की छत्रपती शिवाजी महाराज पूजा करते थे |

कालिका मंदिर

यहा पर आपको कालिका देवी का मंदिर भी देखने को मिलता है |मॉं कालिका देवी को ही भवानी देवी के नाम से जाना जाता है |ऐसा कहा जाता है की भवानी देवी माता छत्रपती शिवाजी महाराज को प्रसन्न हुई थी और उन्हे आशीर्वाद के रूप मे तलवार भेट दी थी |आज भी इस देवी को माना जाता है |

तानाजी मालुसरे समाधी

इस जगह पर शूरवीर तानाजी मालुसरे की समाधी बनवाई गयी थी|आप उसे यहा पर देख सकते है |ऊनके बारे मे और आदिलशाह का सुभेदार उदयभान राठोड के बीच मे हुए युद्ध के बारे की जाणकारी दिवारो पर लिखी हुयी देखने को मिलती है|

सिंहगढ किला इसी जगह की वजह से लोकप्रिय है |फेब्रुवरी 1670 मे कोंढाणा किले मे शूरवीर तानाजी मालुसरे ने अपने 500 मावलो के साथ मिलकर मुघलो के किला अधिकारी उदयभान राठोड और उसके 1200 सैनिको के साथ यहा पर युद्ध किया था |उनके यही युद्ध के कुछ पल को यहा पर पुतलो मे दिखाया गया है |युद्ध मे तानाजी की ढाल टुट गयी थी और उदयभान ने उनका हाथ काट दिया|तब तानाजी ने अपनी सर की पगडी अपने हाथ मे ढाल की तरह बांधकर उससे युद्ध किया था|इस युद्ध मे तानाजी को जीत तो हासिल हुई पर यहीपर उन्हे युद्ध मे वीरगती प्राप्त हुई |

Sinhgad fort trek तानाजी-मालुसरे-समाधी.

तानाजी मालुसरे के साथ साथ उनके छोटे भाई सुर्याजी मालुसरे और शेलार मामा इनका भी इस किले को जितने मे बडा योगदान था |इसी किले के इस विषय पर हिन्दी मे ‘तानाजी’ नाम की फिल्म बनाई गई है |किले मे कल्याण दरवाजा है,जहा पर उदयभान की मौत हुई थी |इस जगह को ‘उदयभान कडा’ नाम से भी जाना जाता है |

जब युद्ध मे तानाजी मालुसरे को वीरगती प्राप्त हुई तब सुर्याजी ने अपने मावलो को युद्ध मे आगे बढने के लिए प्रोत्साहन दिया था |युद्ध मे जीत को हसील कर सुर्याजी ने मशाल जलाकर छत्रपती शिवाजी महाराज को राजगढ पर विजयी संदेश भेज दिया |इस युद्ध मे तानाजी ने सिर्फ सिंहगढ किला ही नही बल्की लोगो के दिल को भी जीत लिया था |

युद्ध के दिन ही तानाजी के बेटे रायबा की शादी थी लेकिन उन्होने सिंहगढ को जितने और उसे स्वराज्य मे स्थापित करने के लिए युद्ध पर जाने का फैसला लिया था |उन्होने सबसे कहा ,”आधी लगीन कोंढान्याच,मग माझ्या रायबाच “लेकिन उन्हे इस युद्ध मे वीरगती मिली |ये दोनो खबर सूनकर छत्रपती शिवाजी महाराज ने कहा ,” गड आला पण सिंह गेला ” मतलब किला तो हमे मिल गया लेकिन शेर चला गया |तानाजी मालुसरे की इस वीरता को जीवित रखने के लिए छत्रपती शिवाजी महाराज ने किले का नाम कोंढाना से सिंहगढ रखा और ऊंनकी किले पर समाधी बनवाई |

सिंहगढ पर आप लोग पहली बार आ रहे है तो आप लोग नीचे दिया सामान अपने साथ ले जाए

  • रेनकोट
  • छाता
  • ट्रेकिंग के जूते
  • हलका खाना और पानी
  • मोबाइल
  • कॅश
  • कॅमेरा ,ड्रॉन
  • प्राथमिक उपचार वाली दवाई

मान्सून का समय यहा पर आने के लिए सही समय है |यहा पर मोबाइल को नेटवर्क नही मिलेगा तो अपने साथ कॅश जरूर रखे |बारीश मे अपने आप के सिवा आप अपने मोबाइल और ड्रॉन को बारीश से बचाने की व्यवस्था रखे |अगर यहा पर फॉग रहेगा तो अपना ड्रॉन संभालना ना भुले |

यह एक ऐतिहासिक किला है |बहुत ही खूबसूरत और स्वर्ग जैसी अनुभूति हमे देता है |जब भी आप लोग यहा पर जाये तो 10 से 15 मिनीट निकालकर शांती से बैठकर अपनी आंखे बंद करके इस सुकून को जी लेना |आपको बहुत ही खूबसूरत अनुभव मिलेगा |

Historical places in jaipur

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