Tulja Bhavani Mata Mandir : महाराष्ट्र के धाराशिव मे तुलजापूर गांव मे स्थित है तुलजा भवानी माता का मंदिर | इस मंदिर मे देवी तुलजा भवानी माता दिन में तीन बार रूप बदलती है | देवी कृपा से छत्रपती शिवाजी महाराज ने मुगलों की फौज को रौंद डाला था | इस मंदिर के बारे में कुछ ऐसी पौराणिक कथाएं जिससे पता चलता है, की मंदिर का इतिहास युग और द्वापर युग से जुडा हुआ है | तो चलीये आज के इस Tulja Bhavani Mata Mandir लेख मे हम आपको मंदिर से जुडा इतिहास, महत्व और मंदिर के बारे मे अधिक जाणकारी देते है |
तुलजा भवानी माता Tulja Bhavani Mata
तुलजाभवानी देवी को महाराष्ट्र की कुलस्वामिनी के नाम से जाना जाता है | इस मंदिर में विराजित मां तुलजा भवानी मराठा शासक छत्रपती शिवाजी महाराज की कुलदेवी है | इतिहास के अनुसार मराठा वीर छत्रपति शिवाजी महाराज स्वयं इस मंदिर में माता की आराधना करते थे | वहीं उनका वंश आज भी इस मंदिर में आस्था रखता है और हमेशा देवी के दर्शन के लिए आता है | एक ऐसी किंवदंती है, की छत्रपती शिवाजी महाराज को मां भवानी तलवार प्रदान की थी | जिससे उन्होंने मुगलों को धूल चटाई थी |
चैत्र और शारदीय की नवरात्र के अवसर पर लगातार 9 दिनों तक यहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ आती है | यहां श्रद्धालुओं देवी के प्रती आस्था जुड़ी हुई है | मंदिर में विराजित शक्ति से सच्चे मन से जो मांगो वह आशीर्वाद मिलता है |ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में चमत्कार होते है | माता की मूर्ति दिन में तीन बार कैसे रूप बदलती है, ये रहस्य अभी तक नहीं सुलझा है |
तुलजा भवानी माता मंदिर
तुलजा भवानी माता का मंदिर यह मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर है | मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भवानी माता साक्षात सिद्धीदात्री के रूप में विराजित है | भवानी माता की यह प्रतिमा दिन में तीन बार रूप बदलती है | सुबह के समय बाल्यावस्था, दोपहर के समय युवावस्था और शाम के समय वृद्धावस्था स्वरूप मे देवी के दर्शन होते है |
महाराष्ट्र के साढ़े तीन शक्तिपीठों में से श्री तुलजाभवानी देवी का यह प्रसिद्ध तुलजापुर का मंदिर पूर्ण शक्तिपीठ है | यह देवी भगवती यानी भवानी के नाम से विख्यात है | तुलजापुर की भवानी देवी महाराष्ट्र की कुलस्वामिनी, महाराष्ट्र की प्रेरणा देवी क्षत्रतेजा, स्वराज्य के संस्थापक राजा श्री शिव छत्रपति की प्रेरणा और आराध्य देवी है | हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक श्री छत्रपति शिवाजी महाराज ने भवानी तलवार देकर उन्हे हिंदवी स्वराज्य की स्थापना का आशीर्वाद दिया था | भवानी मंदिर के मुख्य पुजारी मराठा भोपे वंश के है |
मंदिर इतिहास History Of Tulja Bhavani Mata Mandir
यह तुलजापूर शहर बालाघाट की पहाड़ी पर स्थित है | इस मंदिर के एक भाग को हेमाडपंती से सजाया गया है | ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से यह मंदिर राष्ट्रकूट या यादव काल का माना जाता है | तुलजाभवानी से संबंधित सबसे पुराना शिलालेख ईस्वी में तुलजापुर तालुका में ‘ कटी ‘ में दिनांकित किया ज्ञा है | इसे 1397 के शिलालेख में देख सकते है | मंदिर की धार्मिक पूजा का प्रशासन और पुरोहिती शक्तियाँ 153 पतिकर भोपे वंश में से की जाती है |
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने इसी खांडव वन में अपने वनवास के दौरान समय बिताया था | इसी शक्तिस्थल पर लगातार 9 दिनों तक पूजा अर्चना कर लंका के लिए आगे बढे थे | उन्होने माता से दिव्य अस्त्र शस्त्र प्राप्त किए थे | जबकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि माता भवानी ने खरदूषण के आतंक को खत्म करने के लिए देवी ने भगवान श्रीराम को कुछ विशेष और दिव्य अस्त्र शस्त्र वरदान में दिए थे |
मंदिर विशेषताएँ
Tulja Bhavani Mata Mandir श्री तुलजाभवानी मंदिर में प्रवेश करने के लिए दो प्रमुख प्रवेश द्वार है | इनमे से पहले एक प्रवेश द्वार का नाम राजे शाहजी महाद्वार और दूसरे द्वार का नाम राजमाता जिजाऊ महाद्वार है | देवी के मंदिर तक जाने के लिए पत्थर की सीढ़ियाँ है | सीढ़ियों से नीचे उतरने के बाद, भक्त गोमुख तीर्थ पर दर्शन के लिए जाने से पहले यहाँ स्नान करते है | अपने हाथ और पैर धोते है | ठीक सामने कल्लोल तीर्थ है, कल्लोल तीर्थ के मामले में कहा जाता है, कि देवी के स्नान के लिए तीन तीर्थ एक साथ आए थे |
मंदिर के मुख्य द्वार पर दाहिनी सूंड के सिद्धिविनायक है | यहां आदि शक्ति आदिमाया और अन्नपूर्णा देवी का मंदिर भी है | साथ ही आदिमाया आदि शक्ति पथिमाघे मातंगी देवी मंदिर और श्री दत्त मंदिर, यमई देवी जेजुरी खंडोबा मंदिर भी ध्यान आकर्षित करता है |
मंदिर का मुख्य द्वार चांदी की चादर से ढका हुआ है | यहीं पर हमे श्री तुलजाभवानी की शांत और दीप्तिमान काले पत्थर की मूर्ति दिखाई देती है | तीन फीट ऊंची यह मूर्ति स्वयंभू है | आठ भुजाओं वाली महिषासुरमर्दिनी एक सिंहासन पर खड़ी है और उसके सिर के मुकुट से बालों के गुच्छे निकले हुए है | ऊनके आठ हाथों में त्रिशूल, बिछवा, बाण, चक्र, शंख, धनुष, पानपात्र और राक्षस शंख है | देवी के पीठ पर एक बाण है तथा सिर के दायीं एवं बायीं ओर चंद्रमा एवं सूर्य स्थित है | तुलजाभवानी का दाहिना पैर राक्षस पर महिषा से देखा जाता है और उनका बायां पैर जमीन पर है | दोनों पैरों के बीच राक्षस महिषासुर का सिर है |
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तुलजाभवानी माता मंदिर में मनाए जाने वाले उत्सव
श्री तुलजाभवानी माता मंदिर में रंग पंचमी श्री देवी के मंदिर में रंग पंचमी पारंपरिक तरीके से मनाई जाती है | कालभैरव भेंडोली उत्सव साल के दिवाली की नरक चतुर्दशी पर होता है | हजारों भक्त इस उत्सव को देखने के लिए श्री तुलजाभवानी मंदिर में आते है |
श्री तुलजाभवानी माता मंदिर में एक अद्भुत दशहरा उत्सव होता है | श्री तुलजाभवानी माता की मूर्ति को मंदिर परिसर में पिंपल में लाया जाता है और मंदिर के जुलूस के लिए पालकी में रखा जाता है | भक्त श्री देवी की पालकी पर हल्दी कुंकु छिड़कते है |